शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

जंगल में नव वर्ष मनेगा

शेर खान ने हुक्म सुनाया,
जंगल में नव वर्ष मनेगा.
सामिल होंगे सब पशु पक्षी,
नाच गान का रंग जमेगा.


जंगल में मैदान बड़ा था,
हुए इकट्ठे सब पशु पक्षी.
बिल्ली चूहा भूल दुश्मनी,
मिल कर नाचे खुशी खुशी.


भालू ने जब किया भांगड़ा,
मीठा कोयल ने गीत सुनाया.
और लोमड़ी लगी नाचने,
बन्दर डमरू ले कर के आया.


नाच मोर का सबसे अच्छा, 
हाथी ने करतब दिखलाया.
भूल दुश्मनी गले मिले सब,
प्यार देख जंगल हर्षाया.


शेरखान खुश हो कर बोला,
जंगल में कितना मंगल है.
शहरों से यह जंगल अच्छा
हर रोज वहां पर तो दंगल है.


नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !


कैलाश शर्मा

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

सेंटा क्लॉज हैं कितने प्यारे

हैप्पी क्रिसमस है जब आता,
घर बाहर सब है सज जाता.


क्रिसमस ट्री है घर में लाते,
मिलकर उसको सभी सजाते.


सेंटा क्लॉज हैं कितने प्यारे,
लाते गिफ्ट हैं कितने सारे.


लाल कोट और लाल है टोपी,
भारी गठरी कंधे पर होती.


लम्बी सफ़ेद दाढ़ी है प्यारी,
है मुस्कान भी उनकी न्यारी.


बच्चे उनको प्यार हैं करते,
इंतज़ार उपहार का करते.


क्रिसमस खुशियाँ लेकर के आये,
सब मिलजुल कर के इसे मनायें.


MERRY CHRISTMAS


कैलाश शर्मा 



बुधवार, 14 दिसंबर 2011

जब भी मोर नाचता वन में



जब भी मोर नाचता वन में,
खुशियाँ छा जाती हैं मन में.
पंख खोल जब नाच दिखाता,
रंग बिखर जाते हैं वन में.


नीली प्यारी लम्बी गर्दन,
उस पर बिखरे सोने के कण.
सिर पर सुन्दर ताज सजा है,
तुम्हें मानते राजा पक्षी गण.


इतने सुन्दर पंख न देखे,
जैसे चन्द्र उगे अम्बर में.
पीले, हरे रंग भी बिखरे,
इन लम्बे चमकीले पर में.


आते हैं जब काले बादल,
मोर नाचते हैं जंगल में.
कुहू कुहू आवाज गूंजती,
उत्सव आजाता जंगल में.


गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

आओ चलो पार्क में खेलें

                           पढ़ते समय ध्यान से पढ़ते,
                           होम वर्क हम मन से करते.
                           तन मन में ताज़गी जगाने,
                           आओ चलो पार्क में खेलें.


                          कार्टून, टी वी कम देखें,
                          वीडियो गेम भी थोडा खेलें.
                          देखो  मौसम कितना अच्छा,
                          आओ चलो बॉल से खेले.


                          खेल हैं तन मज़बूत बनाते,
                          प्रेम और सद्भाव जगाते.
                          नये नये हैं मित्र भी बनते,
                          जब बाहर जाकर के खेलें.

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

माँ की गोद ही सबसे प्यारी

                             जब से खड़े  हुए  पैरों पर,
                             बढ़ी है कितनी जिम्मेदारी.
                             सुबह नींद से जल्दी उठना,
                             बनी है  जीवन की लाचारी.


                             होमवर्क इतना मिलता है,
                             आती नहीं खेल की बारी.
                             मेरे वजन से ज्यादा जल्दी,
                             स्कूल बैग हो जाता भारी.


                             कितने भी साथी मिल जायें,
                             चाहे खिलोने हों मनहारी.
                             लेकिन मुझको तो लगती है,
                             माँ की गोद ही सबसे प्यारी.

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

तितली रानी

                         तितली रानी, तितली रानी,
                         इतने रंग कहाँ से लाती.
                         उड़ती फिरती फूल फूल पर,
                         सुन्दरता है सबको भाती. 

                         नीली पीली लाल गुलाबी,
                         कितने रंगों में तुम होती.
                         उन प्यारे रंगों के ऊपर,
                         सुन्दर है चितकारी होती.

                         अपनी सुन्दरता के कारण,
                         तुमहो इस उपवन की रानी.
                         चटकीले प्यारे रंग इतने,
                         जिनकी नहीं कोई भी सानी.

                         तुमसे  बात चाहता करना,
                         क्यों तुम दूर दूर उड़ जाती.
                         मैं तो दोस्त चाहता बनना,
                         मुझे देख तुम क्यों ड़र जाती.



शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

चुनमुन चिड़िया

प्यारी सी एक चुनमुन चिड़िया,
रोज फुदकती है आँगन में.
दाना चुगती, चूँ चूँ करती,
खुशियाँ भरती मेरे मन में.

प्यार बहुत करता मैं उससे,
लेकिन पास नहीं वह आती.
दाना देता अगर हाथ से,
फुर करके है वह उड़ जाती.

रोज खिलाऊंगा मैं अब दाना,
एक दिन दोस्त वो हो जायेगी.
फिर ऐसा एक दिन आयेगा,
मेरे हाथ से जब दाना खायेगी.

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

लालची कुत्ता (काव्य-कथा)

हड्डी मिली एक कुत्ते को,
खुशी खुशी लेकर के भागा.
उसके रस्ते में एक पुल था,
उसने उससे पानी में झांका.

उसे नज़र आयी पानी में,
एक हड्डी कुत्ते के मुंह में.
कैसे वह हड्डी भी पाऊँ,
लालच जागा उसके मन में.

जैसे ही उसने मुंह खोला, 
भौंक डराने उस कुत्ते को.
हड्डी मुंह से गिरी छूट कर,
फिर अफसोस हुआ था उसको.

ज्यादा जो लालच करता है,
उसको पड़ता है पछताना.
जो तुमने मेहनत से पाया,
लालचवश न उसे गंवाना.

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

होशियार चूहा

एक  था  चूहा  बड़ा  सयाना,
हाथ न बिल्ली के वह आता.
जब भी बिल्ली कोशिश करती,
किसी युक्ति से वह बच जाता. 

एक दिन बिल्ली चूहे से बोली,
कल तुम घर खाने पर आना.
चूहा बोला एक दोस्त है मेरा,
मुश्किल है उसके बिन आना.

दो दो चूहे मिल जायेंगे,
बिल्ली मन ही मन हर्षाई.
दोस्त तुम्हारे का स्वागत है,
उसको भी ले आना भाई.

लेकिन भाई बताओ इतना,
कौन दोस्त इतना पक्का है.
सबसे प्यारा दोस्त जो मेरा,
वह प्यारा सीजर कुत्ता है.

नाम सुना सीजर का उसने,
बिल्ली भागी पूरी तेजी से.
खाना खाने क्या कल आऊँ,
चूहा हँस के बोला बिल्ली से. 

बुधवार, 28 सितंबर 2011

नकलची बन्दर (काव्य - कथा)

एक टोपियों का व्यापारी,
लौट रहा था घर गर्मी में.
सिर पर थी टोपी की गठरी,
कपड़े चिपक रहे थे तन में.

थक कर उसको चलते चलते,
छायादार पेड़ नजर था आया.
खूब लदे मीठे फल उस पर,
ठंडी  हवा, घनी  थी  छाया.

गठरी को वह नीचे रखकर,
थक कर लेट गया छाया में.
गहरी नींद आ गयी उसको,
ठंडी घनी पेड़ छाया में.

टूटी नींद तो उसने देखा,
उसकी गठरी खुली हुई थी.
बन्दर बैठे थे पेड़ों पर,
टोपी सिर पर लगी हुईं थी.

पाने को वापिस वो टोपियाँ,
उसने पत्थर बन्दर पर फेंके.
उसके बदले सब बन्दर ने,
तोड़ तोड़ फल उस पर फेंके.

लगा खुजाने सिर व्यापारी,
एक तरकीब समझ में आयी.
अपनी टोपी को उतार कर,
उन बन्दर की तरफ हिलायी.

व्यापारी ने फिर अपनी टोपी,
दूर जमीं पर जोर से फेंकी.
बन्दर होते सदां नकलची,
अपनी टोपी भी उनने फेंकी.


अपनी सभी टोपियाँ लेकर,
बांधी उसने अपनी गठरी.
खुश हो कर वह चला वहां से,
सिर पर रखकर के वो गठरी.


कोई भी विपत्ति जब आये,
धीरज अपना कभी न खोना.
सदां बुद्धि से राह निकलती, 
व्यर्थ  सदां  संकट  में रोना.  

रविवार, 11 सितंबर 2011

हुआ सवेरा


हुआ सवेरा अब मत सो,
झट-पट उठो हाथ मुंह धो.

होले-होले ब्रश कर डालो,
मालिश तेल की और नहा लो.

मल-मल साबुन खूब नहाना,
फिर टॉवेल से रगड़ सुखाना.

शाला की फिर ड्रेस पहन कर,
करो नाश्ता झट से हंस कर.

जगा रही हूँ, जल्दी जागो,
आँखें खोलो, आलस त्यागो.

अब चट से उठ जाओ लाल,
कहती चूम कर उन्नत भाल.

उठ जाओ साहस करके बच्चा,
प्रात समय आलस नहीं अच्छा.


प्रभा तिवारी 
भोपाल 

सोमवार, 5 सितंबर 2011

नन्हा शिक्षक



कल तक मैं कक्षा में पढ़ता,
आज बना लेकिन मैं टीचर.
जैसे ही मैं कक्षा में पहुंचा,
बच्चे बोले गुड़ मोर्निंग टीचर.

मैंने कहा निकालो पुस्तक,
आज पढ़ाऊंगा मैं तुमको.
ए बी सी डी लिखी बोर्ड पर,
पढ़ कर ये बतलाओ मुझको.

मेरी आज समझ में आया,
टीचर कितनी मेहनत करतीं.
बड़े प्यार से सदा पढ़ातीं,
मुझको टीचर अच्छी लगतीं.

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

मीठी सीख

हे प्रिय बालक ! लड़ना छोडो,
क्रोध कपट से भी मुख मोड़ो.

कड़वे वचन कभी मत बोलो,
सदा मिठास वचन में घोलो.

मधुर वचन जो बालक बोलें,
मन चाहे जहां घूमत डोलें.

जो सबको अपना सा जाने,
उनको सब अपना ही माने.

मदद सदा मित्रों की करते,
उन पर मित्र भरोसा करते.

जो भी सद्गुण अपनाते हैं,
जग में कीर्ति सदा पाते हैं.

वंश, जाति का नाम बढाते,
देश विदेश में गौरव पाते.

बोलो ! तुम भी यही करोगे,
मात-पिता मन मोद भरोगे.

प्रभा तिवारी,
भोपाल 

रविवार, 21 अगस्त 2011

चालाक लोमड़ी ( काव्य-कथा )

कौए को एक मिली थी रोटी,
बैठा उसे पेड़ पर लेकर.
खाऊँगा अब इसे स्वाद से,
धीरे धीरे, मजे ले लेकर.

एक लोमड़ी ने जब देखा,
रोटी देख के वो ललचायी.
कैसे  यह  रोटी  मैं  पाऊं,
उसने उसकी जुगत लगायी.

मेरे  सुन्दर  प्यारे  भैया,
तुम कितना मीठा गाते हो.
सब गाते जंगल में बेसुर,
तुम ही बस अच्छा गाते हो.

कौआ हुआ फूल कर कुप्पा,
जब उसने ये सूनी प्रशंसा.
बुद्धि बंद हो गयी उसकी,
समझ न पाया उसकी मंशा.


गाने को जैसे ही मुंह खोला,
नीचे गिरी चोंच से रोटी.
भाग गयी लेकर के लोमड़ी,
बोली बुद्धि तुम्हारी मोटी.


झूठी तारीफ़ से बचना सीखो,
अपनी कमियों को पहचानो.
चापलूस  हैं  बहुत  यहाँ  पर,
उनकी बातों का मतलब जानो.

बुधवार, 17 अगस्त 2011

हम भारत के वीर : प्रभा तिवारी

हमें निरा बालक मत समझो,
  हम हैं भारत भूमि के वीर.

पढ़ने में ध्यान लगाते हैं,
हम खूब खेलते खाते हैं.
जब काम पर जा जुट जाते हैं,
तब हटा नहीं सकते हमको,
बिजली, ओले, आंधी और नीर.
हमें निरा बालक मत समझो,
हम हैं भारत भूमि के वीर.

मत कहो अकल के कच्चे हैं,
हम सभी शेर के बच्चे हैं.
विश्वासी, सीधे, सच्चे हैं,
अवसर पर चला दिखा देंगे
अभिमन्यु जैसे तीर.
हमें निरा बालक मत समझो,
हम हैं भारत भूमि के वीर.

आगे आगे ही बढ़ना है,
ऊँचे ऊँचे ही चढ़ना है. 
कुछ नया नया ही गढ़ना है,
सम्पूर्ण विश्व में गुरुतम होगी
भारत की तस्वीर.
हमें निरा बालक मत समझो,
हम हैं भारत भूमि के वीर.

लहर नयी फिर आयी है,
जिसने यह राह दिखायी है.
अन्ना जी से प्रेरणा पायी है,
सब मिलकर उनके साथ चलें
भ्रष्टों की बदल देवें तदवीर.
हमें निरा बालक मत समझो,
हम हैं भारत भूमि के वीर.

प्रभा तिवारी 
भोपाल.(bhajgovindam1.blogspot.com)





रविवार, 14 अगस्त 2011

स्वतंत्रता दिवस : प्रभा तिवारी

आज विदेशी की सत्ता से,
मुक्त हुए थे भारत वासी.
आज छुटी थी युग युग की, 
पहनाई भारत माँ की गांसी.

कोटि कोटि बलिदान युगों के,
आज पर्व बन सफल हुए थे.
अपने को असहाय समझने
वाले मन सब सबल हुए थे.

आज वही है पुण्य पर्व,
पंद्रह अगस्त जो कहलाता.
आज दिखा था लाल किले पर,
अपना तिरंगा लहराता.

आज उसी की वर्ष गाँठ है,
आओ हम सब मिल गायें.
प्यारा भारतवर्ष हमारा,
चिर स्वतंत्र कहलायें.

प्रभा तिवारी
भोपाल.

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

रक्षा बंधन : प्रभा तिवारी

लो रक्षा बंधन फिर आया,
भारत के हर भाई बहिन के 
उर आनंद समाया.
लो रक्षा बंधन फिर आया.

यह त्यौहार बहिन भाई का,
सुन्दर राखी और मिठाई का.
ढेरों खुशियाँ संग में लाया,
लो रक्षा बंधन फिर आया.

नये नये कपड़े पहनेंगे,
गहने भी कुछ नये मिलेंगे.
इसी लिये तो सबको भाया,
लो रक्षा बंधन फिर आया.

भैया दीदी घर जायेंगे,
अपने घर लेकर आयेंगे.
इसने सब का मिलन कराया,
लो रक्षा बंधन फिर आया.

सब मिल कर नाचें गायेंगे,
यह सुख साल बाद पायेंगे.
हंसते गाते सबने मनाया,
लो रक्षा बंधन फिर आया.

यह प्रति वर्ष सदा ही आये,
हम सब हिल मिल इसे मनायें.
प्रभु से सब ने ये ही माँगा,
सादर शीश नवाया,
लो रक्षा बंधन फिर आया.


मंगलवार, 2 अगस्त 2011

अच्छे बच्चे कौन ? - प्रभा तिवारी

अच्छे बच्चे वही कहाते,
सबको मीठी बात सुनाते.

जल्दी सोवें, जल्दी जागें,
उठकर प्रभु को शीश नवावें.

हंसकर सबको करें नमस्ते,
काम करें सब हंसते हंसते.

कुछ लेने की जिद  नहीं करते,
गन्दा बोलना बुरा समझते.

बात बड़ों की कभी न टालें,
जो मिल जाए हंस कर खालें.

पढ़ते समय मन लगा पढ़ते,
खेल-खेल में कभी न लड़ते.

अच्छी राह पर आगे बढ़ते,
ऊँचे ऊँचे सदा ही  चढ़ते.

मात पिता की आज्ञा मानें,
उनको ही जग अच्छा मानें.

बच्चो ! तुम सब ऐसे बन जाओ,
जाति देश का नाम बढ़ाओ.

प्रभा तिवारी
भोपाल

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

घमंडी शेर (काव्य-कथा)



शेर  घमंडी एक  जंगल में,
उसने एक दिन कुआ देखा.
झाँका जब अंदर को उसने,
अपना चेहरा पानी में देखा.


मैं हूँ इस जंगल का राजा,
दूजा शेर यहाँ क्यों आया.
उसने झाँक  कुए में पूछा,
तू है कौन यहाँ क्यों आया.


वह आवाज गूँज कर आयी,
तू है कौन यहाँ क्यों आया.
सुनकर यह आवाज़ वहाँ से,
गुस्सा बहुत शेर को आया.


बोला मैं जंगल का राजा,
आयी वह आवाज़ गूँज कर.
गुस्सा बहुत शेर को आया,
कूद पड़ा वह उसके  अंदर.


डूब गया पानी के अंदर,
उसने अपनी जान गंवाई.
था घमंड शक्ति के ऊपर,
नहीं बुद्धि थी उसने पायी.


शक्ति और बुद्धि दोनों हों,
वही सदा है आगे बढता.
केवल शक्ति के घमंड से,
बुद्धिहीन शेर सा मरता.

शनिवार, 16 जुलाई 2011

दर्जी और हाथी (काव्य-कथा)


एक गाँव में एक दर्जी था,
वह सब के कपड़े था सिलता.
उसी गाँव में एक हाथी था,
उस रस्ते  से रोज गुजरता.


दोनों में थी बहुत दोस्ती,
एक दूजे से बहुत प्यार था.
दर्जी उसको  केला देता,
हाथी जब नदिया जाता था.


एक दिन दर्जी गया शहर को,
अपने बेटे को काम सौंप कर.
था बेटा शैतान प्रकृति का,
प्रेम  भाव  न उसके अंदर.


हाथी आया जब दुकान पर,
उसने  अपनी  सूंड  बढ़ाई.
लडके  को  शैतानी  सूझी,
उसने  उसमें सुई  चुभाई.


दर्द हुआ हाथी को लेकिन,
उसने गुस्सा नहीं दिखाया.
जब हाथी नदिया से लौटा,
सूंड में गन्दा पानी  लाया.


हाथी जब पहुंचा दूकान पर,
उसने  पानी  वहाँ  गिराया.
कपड़े  सभी  हो गये  गन्दे,
शैतानी पर लड़का पछताया.


गर दोगे तुम दुःख दूजे को,
तो बदले में दुःख पाओगे.
बोओगे तुम बीज जिस तरह,
वैसा ही तुम फल पाओगे.

सोमवार, 11 जुलाई 2011

चतुर कौआ (काव्य-कथा)

तेज धूप में प्यासा कौआ,
ढूंढ  रहा  पीने  को  पानी.
नाले  नदी  सभी सूखे थे,
कहीं नज़र न आया पानी.


एक घड़े पर नज़र पडी जब,
उसके तल में कुछ पानी था.
उसने हर कोशिश कर डाली,
दूर  चोंच  से पर  पानी  था.


देखा उसने इधर उधर को,
नज़र पड़ी  ढेर कंकड़  पर.
एक एक कंकड़  लाकर के,
ड़ाल दिए उस घट के अंदर.


पानी घट के मुख तक आया,
उसने अपनी प्यास बुझाई.
हार  नहीं उसने  मानी  थी,
काम आयी उसकी चतुराई.


हार न मानो कठिनाई से,
हिम्मत देती सदा सफलता.
एक रास्ता बंद मिले तो,
बुद्धि खोजती दूजा रस्ता.

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

शेर और चूहा (काव्य-कथा)

सोया एक  शेर जंगल में,
चूहा उस पर लगा कूदने.
गुस्सा बहुत शेर को आया,
पकड़ा चूहा पंजे से उसने.


चूहा  लगा  कांपने  डर से,
बोला दोनों हाथ जोड़ कर.
माफ करो जंगल के राजा,
गलती नहीं करूँगा में अब.


छोटा बहुत  आपके सम्मुख,
पर अहसान नहीं भूलूँगा.
जब भी तुम मुश्किल में होगे,
मैं  सबसे  पहले  पहुंचूंगा.


हंसने  लगा शेर जोरों से,
तुम चूहे क्या मदद करोगे.
चलो छोड़ देता हूँ तुमको,
तुम मेरा क्या पेट भरोगे.


शेर फंस गया था जंगल में,
कुछ  दिन बाद एक फंदे में.
जितना ज्यादा जोर लगाता,
कसता जाता उतना फंदे में.


सुन कर दर्द भरी चीखों को,
चूहा वहाँ भाग कर आया.
बोला तुम अब मत घबराओ,
तुम्हें  बचाने  मैं  हूँ आया.


कुतर दिया फंदा दांतों से,
शेर जाल से बाहर आया.
आज़ादी अपनी पाने पर,
चूहे को आभार जताया.


निर्बल पर तुम दया दिखाओ,
दया  का फल  मीठा  होता है.
होता हुनर  सभी में  कुछ तो,
कद से न गुण छोटा होता है. 

गुरुवार, 30 जून 2011

रिमझिम बारिस




                              रिमझिम रिमझिम बारिस आती,
                                 मन को कितनी ठंडक लाती.

                                     मुरझाये पत्ते हरियाते,
                                     उपवन में पौधे लहराते.
                                     होजाती जीवंत प्रकृति है,
                                     जब काले बादल छा जाते.

                                     जंगल में है मोर नाचता,
                                     भालू अपना ढोल बजाता.
                                     कोयल मीठा गीत सुनाती,
                                     हाथी भी है तान मिलाता.

                                     आओ हम बारिस में भीगें,
                                     झूलों पर लें ऊंची पींगें.
                                     डर कर खड़े हुए क्यों अंदर,
                                     वैसे भरते इतनी डींगें.

                                    
                                     वर्षा गर्मी से है राहत लायी,
                                     हर मन में खुशियाँ हैं छायी.
                                     नया नया सा है सब लगता,
                                     जैसे प्रकृति नहा कर आयी.

शनिवार, 25 जून 2011

खरगोश और कछुआ

                      आओ बच्चो  तुम्हें सुनायें, सुन्दर  एक कहानी,
                      जिसे सुनाया करती थीं बचपन में हमको नानी.

                                था खरगोश और एक कछुआ
                                 रहते थे मिल कर जंगल में.
                                 गहरे दोस्त  बहुत  दोनों थे,
                                 पर खरगोश घमंडी दिल में.

                              कछुआ चलता सरक सरक कर,
                                पर खरगोश  दौड़ कर जाता.
                                अपनी तेज  चाल के कारण,
                                कछुए को वह रोज चिढाता.

                               कछुए को दिखलाने नीचा,
                               उसने एक दिन शर्त लगाईं.
                               दौड़ लगाते हम पोखर तक,
                               पहले  कौन  पहुंचता  भाई.

                              सभी जानवर हुए इकट्ठे
                              उन दोनों की रेस देखने.
                              कोयल की सीटी बजने पर
                              लगे देख कछुए को हंसने.

                           निकल गया खरगोश था आगे,
                             उसने पीछे मुड़ कर देखा.
                             कहीं दूर तक न कछुआ था,
                             घना पेड़  एक  आगे देखा.

                            थोडा  आराम अभी  मैं  कर लूँ,
                            कछुआ  यहाँ  नहीं  पहुंचेगा.
                            मैं पलभर में पोखर जा सकता,
                            कछुआ  वहां  नहीं  पहुंचेगा.

                           कछुआ चलते धीरे धीरे आया,
                           था  खरगोश नींद में गहरी.
                           चौंक गया  खरगोश उठा जब,
                           शाम हो गयी थी अब गहरी.

                           लगा छलांग दौड़ जब पहुंचा,
                           पोखर पर कछुए  को पाया.
                           सभी जानवर हंस कर बोले,
                           कछुआ प्रथम दौड़ में आया.

                           नज़र रखो मंजिल पर हरदम,
                           कभी न आलस को अपनाओ.
                           नहीं किसी को छोटा समझो,
                           कभी घमंड न  मन में लाओ.

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