मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

पंख अगर मेरे होते तो

                                 पंख अगर मेरे होते तो,
                                 जब मन करता मैं उड़ जाता.
                                 सुबह नाश्ता घर पर करता,
                                 नानी के घर खाना खाता.


                                 आसमान में उड़ कर जाता,
                                 बादल को छू कर आ जाता.
                                 तारों को मुट्ठी में भर कर,
                                 चन्दा मामा से मिल आता.


                                 तितली मेरी साथी होती.
                                 चिड़ियों के मैं साथ खेलता.
                                 कभी ज़मीं पर दौड़ लगाता,
                                 कभी पेड़ पर मैं उड़ जाता.


                                जब मन करता गोवा जाता,
                                मन करता मुंबई उड़ जाता.
                                स्कूल बस की छुट्टी करता,
                                उड़ कर मैं कक्षा में जाता. 

26 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
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  2. बच्चों के लिए बहुत अच्छी प्रेरणा दायक कविता| धन्यवाद|

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  3. सुंदर कविता ....आपने तो हम बच्चों के लिए सुंदर ब्लॉग बनाया है..... थैंक यू

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  4. आपकी यह बेहतरीन बच्चों के लिए पोस्ट ..हम बडो को भी बहुत पसंद आयी है... आपकीं यह पोस्ट कल चर्चामंच पर होगी .. आपका आभार ..

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  5. बच्‍चों के लिए कल्‍पनाओं से भरी अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  6. कैलाश जी बचपन में लौटा ले गये आप| जय हो|

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  7. कितनी प्यारी और भोली आकांक्षायें हैं ! बालमन की बेहद आकर्षक छवि को समेटती बहुत ही सुन्दर कविता ! बधाई एवं आभार !

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  8. .

    बच्चों के लिए लिखना ही अपने आप में एक अनुकरणीय कार्य है । कविता के तो कहने ही क्या ! बालमन कों लुभाने वाली है ।
    आभार !

    .

    .

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  9. बालक मन की तरह निर्मल और कल-कल धारा की तरह प्रावाह्मयी प्रस्तुति.

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  10. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  11. दिनांक 14/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  12. यह एक अद्भुत और शानदार कविता है

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