शेर घमंडी एक जंगल में,
उसने एक दिन कुआ देखा.
झाँका जब अंदर को उसने,
अपना चेहरा पानी में देखा.
मैं हूँ इस जंगल का राजा,
दूजा शेर यहाँ क्यों आया.
उसने झाँक कुए में पूछा,
तू है कौन यहाँ क्यों आया.
वह आवाज गूँज कर आयी,
तू है कौन यहाँ क्यों आया.
सुनकर यह आवाज़ वहाँ से,
गुस्सा बहुत शेर को आया.
बोला मैं जंगल का राजा,
आयी वह आवाज़ गूँज कर.
गुस्सा बहुत शेर को आया,
कूद पड़ा वह उसके अंदर.
डूब गया पानी के अंदर,
उसने अपनी जान गंवाई.
था घमंड शक्ति के ऊपर,
नहीं बुद्धि थी उसने पायी.
शक्ति और बुद्धि दोनों हों,
वही सदा है आगे बढता.
केवल शक्ति के घमंड से,
बुद्धिहीन शेर सा मरता.
एक गाँव में एक दर्जी था,
वह सब के कपड़े था सिलता.
उसी गाँव में एक हाथी था,
उस रस्ते से रोज गुजरता.
दोनों में थी बहुत दोस्ती,
एक दूजे से बहुत प्यार था.
दर्जी उसको केला देता,
हाथी जब नदिया जाता था.
एक दिन दर्जी गया शहर को,
अपने बेटे को काम सौंप कर.
था बेटा शैतान प्रकृति का,
प्रेम भाव न उसके अंदर.
हाथी आया जब दुकान पर,
उसने अपनी सूंड बढ़ाई.
लडके को शैतानी सूझी,
उसने उसमें सुई चुभाई.
दर्द हुआ हाथी को लेकिन,
उसने गुस्सा नहीं दिखाया.
जब हाथी नदिया से लौटा,
सूंड में गन्दा पानी लाया.
हाथी जब पहुंचा दूकान पर,
उसने पानी वहाँ गिराया.
कपड़े सभी हो गये गन्दे,
शैतानी पर लड़का पछताया.
गर दोगे तुम दुःख दूजे को,
तो बदले में दुःख पाओगे.
बोओगे तुम बीज जिस तरह,
वैसा ही तुम फल पाओगे.
तेज धूप में प्यासा कौआ,
ढूंढ रहा पीने को पानी.
नाले नदी सभी सूखे थे,
कहीं नज़र न आया पानी.
एक घड़े पर नज़र पडी जब,
उसके तल में कुछ पानी था.
उसने हर कोशिश कर डाली,
दूर चोंच से पर पानी था.
देखा उसने इधर उधर को,
नज़र पड़ी ढेर कंकड़ पर.
एक एक कंकड़ लाकर के,
ड़ाल दिए उस घट के अंदर.
पानी घट के मुख तक आया,
उसने अपनी प्यास बुझाई.
हार नहीं उसने मानी थी,
काम आयी उसकी चतुराई.
हार न मानो कठिनाई से,
हिम्मत देती सदा सफलता.
एक रास्ता बंद मिले तो,
बुद्धि खोजती दूजा रस्ता.
सोया एक शेर जंगल में,
चूहा उस पर लगा कूदने.
गुस्सा बहुत शेर को आया,
पकड़ा चूहा पंजे से उसने.
चूहा लगा कांपने डर से,
बोला दोनों हाथ जोड़ कर.
माफ करो जंगल के राजा,
गलती नहीं करूँगा में अब.
छोटा बहुत आपके सम्मुख,
पर अहसान नहीं भूलूँगा.
जब भी तुम मुश्किल में होगे,
मैं सबसे पहले पहुंचूंगा.
हंसने लगा शेर जोरों से,
तुम चूहे क्या मदद करोगे.
चलो छोड़ देता हूँ तुमको,
तुम मेरा क्या पेट भरोगे.
शेर फंस गया था जंगल में,
कुछ दिन बाद एक फंदे में.
जितना ज्यादा जोर लगाता,
कसता जाता उतना फंदे में.
सुन कर दर्द भरी चीखों को,
चूहा वहाँ भाग कर आया.
बोला तुम अब मत घबराओ,
तुम्हें बचाने मैं हूँ आया.
कुतर दिया फंदा दांतों से,
शेर जाल से बाहर आया.
आज़ादी अपनी पाने पर,
चूहे को आभार जताया.
निर्बल पर तुम दया दिखाओ,
दया का फल मीठा होता है.
होता हुनर सभी में कुछ तो,
कद से न गुण छोटा होता है.