सोमवार, 11 जुलाई 2011

चतुर कौआ (काव्य-कथा)

तेज धूप में प्यासा कौआ,
ढूंढ  रहा  पीने  को  पानी.
नाले  नदी  सभी सूखे थे,
कहीं नज़र न आया पानी.


एक घड़े पर नज़र पडी जब,
उसके तल में कुछ पानी था.
उसने हर कोशिश कर डाली,
दूर  चोंच  से पर  पानी  था.


देखा उसने इधर उधर को,
नज़र पड़ी  ढेर कंकड़  पर.
एक एक कंकड़  लाकर के,
ड़ाल दिए उस घट के अंदर.


पानी घट के मुख तक आया,
उसने अपनी प्यास बुझाई.
हार  नहीं उसने  मानी  थी,
काम आयी उसकी चतुराई.


हार न मानो कठिनाई से,
हिम्मत देती सदा सफलता.
एक रास्ता बंद मिले तो,
बुद्धि खोजती दूजा रस्ता.

16 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच ||
    कौआ तो
    सचमुच चतुर निकला |
    अच्छी प्रस्तुति
    आभार ||

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  2. बेहतरीन लिखा है सर.
    ---------
    कल 12/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. बहुत बालोपयोगी रचना!
    बुद्धिर्यस्य बलम् तस्य!

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  4. काव्य - कथा के माध्यम से 'चतुर कौआ' द्वारा कहानी का काव्य रूप में प्रस्तुतीकरण अत्यंत प्रभावशाली है. बच्चों के मानस - पटल पर प्रभाव छोड़ने वाली अच्छी रचना. धन्यवाद.
    आनन्द विश्वास.

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  5. अभी तक कहानी पढ़ी थी.बाल-कविता के रूप में सुंदरता से ढली है.

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  6. अच्छी लगी ..कहानी तो कई बार सुनी-पढ़ी थी पर आज कविता पढ़ आकर और भी अच्छा लगा .

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  7. हार न मानो कठिनाई से,
    हिम्मत देती सदा सफलता.
    एक रास्ता बंद मिले तो,
    बुद्धि खोजती दूजा रस्ता..
    कौआ बहुत ही चतुर था ! आख़िर उसने हिम्मत नहीं हारी ! सुन्दर सन्देश देती हुई शानदार रचना!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/

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  8. आपकी बाल कविताओं की एक सबसे बड़ी खूबी यही है कि ये कहानी का काव्य रूप होकर भी सरलता नहीं खोता और न ही बनावटीपन आने पाता है.

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  9. हार न मानो कठिनाई से,
    हिम्मत देती सदा सफलता.
    एक रास्ता बंद मिले तो,
    बुद्धि खोजती दूजा रस्ता.......सुन्दर बालोपयोगी रचना!

    जवाब देंहटाएं

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