हुआ सवेरा अब मत सो,
झट-पट उठो हाथ मुंह धो.
होले-होले ब्रश कर डालो,
मालिश तेल की और नहा लो.
मल-मल साबुन खूब नहाना,
फिर टॉवेल से रगड़ सुखाना.
शाला की फिर ड्रेस पहन कर,
करो नाश्ता झट से हंस कर.
जगा रही हूँ, जल्दी जागो,
आँखें खोलो, आलस त्यागो.
अब चट से उठ जाओ लाल,
कहती चूम कर उन्नत भाल.
उठ जाओ साहस करके बच्चा,
प्रात समय आलस नहीं अच्छा.
प्रभा तिवारी
भोपाल
बच्चों को सुन्दर सन्देश देती हुई प्यारी रचना ...........बहुत ही प्यारी लगी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
अच्छी शिक्षाप्रद बालकविता!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता!!!
जवाब देंहटाएंअच्छी शिक्षाप्रद कविता|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंप्यारी लगी बालकविता |
जवाब देंहटाएंbahut hi pyari bal kavit.......
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और प्रेरणाप्रद रचना। कैलाश जी, बधाई स्वीकारें।
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कब तक ढ़ोना है मम्मी, यह बस्ते का भार?
आओ लल्लू, आओ पलल्लू, सुनलो नई कहानी।
सन्देश देती हुई प्यारी-प्यारी सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंप्यारी बालकविता .....
जवाब देंहटाएंBahut hi acchhi bal-kavita... Bahut hi manoram prastuti.. Aabhar..
जवाब देंहटाएंसुंदर बाल गीत।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता....
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