बुधवार, 14 दिसंबर 2011

जब भी मोर नाचता वन में



जब भी मोर नाचता वन में,
खुशियाँ छा जाती हैं मन में.
पंख खोल जब नाच दिखाता,
रंग बिखर जाते हैं वन में.


नीली प्यारी लम्बी गर्दन,
उस पर बिखरे सोने के कण.
सिर पर सुन्दर ताज सजा है,
तुम्हें मानते राजा पक्षी गण.


इतने सुन्दर पंख न देखे,
जैसे चन्द्र उगे अम्बर में.
पीले, हरे रंग भी बिखरे,
इन लम्बे चमकीले पर में.


आते हैं जब काले बादल,
मोर नाचते हैं जंगल में.
कुहू कुहू आवाज गूंजती,
उत्सव आजाता जंगल में.


31 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और मनोहारी बाल कविता..

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  2. बहुत प्यारी, मोर-सा सुन्दर, न्यारी कविता...

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  3. मोर की सुंदरता से सुसजित प्यारी सी बाल कविता ...

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  4. बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति......

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  5. बहुत सुन्दर मनोहारी बाल कविता|

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  6. कोमल एहसासों से सजी हुई प्यारी रचना ....

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  7. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-729:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  8. वाह-वाह!
    बहुत प्यारा बाल गीत है।

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  9. मनोहारी सुंदर बाल रचना,...बढ़िया पोस्ट ...
    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

    नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
    अमरशहीद मातृभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
    भूल हुई शासन दे डाला, सरे आम दु:शाशन को
    हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,

    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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  10. मोर के इंद्रधनुषी रंगों का मनोरम वर्णन.सुंदर बाल-गीत.

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  11. मोर के इंद्रधनुषी रंगों का मनोरम वर्णन.सुंदर बाल-गीत.

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  12. बहुत सुन्दर रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई.


    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें, प्रतीक्षा रहेगी .

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