बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

चंदा मामा

मामा बनते हो तुम चंदा
मेरे घर पर कभी न आते.
तारों साथ रात भर रहते
पर बच्चों के पास न आते.


घटते बढ़ते रोज रोज क्यों,
पूरे तुम अच्छे लगते हो.
इसका राज बताओ हमको,
क्या तुम दूध नहीं पीते हो?


कभी चांदनी लेकर आते,
कभी अँधेरे में क्यों रहते?
सारी रात जागते हो तुम,
दिन में किसके घर में रहते?


नानी रहती साथ तुम्हारे
हर पल रहती सूत कातती.
मेरी नानी तो दूर बहुत है
बहुत दिनों में मिलने आती.


आओ कभी हमारे घर पर
हमें कहानी खूब सुनाओ.
खीर बनायेगी माँ मेरी,
आओ बड़े स्वाद से खाओ.


कैलाश शर्मा 

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

लोमड़ी और सारस (काव्य-कथा)

गहरे दोस्त लोमड़ी सारस,
रहते थे एक नदी किनारे.
कहा लोमड़ी ने सारस से,
खाने पर घर आओ हमारे.

सूट, बूट और टाई पहन कर,
सारस घर से निकला सजकर.
भूख जग गयी थी सारस की,
पहुंचा जब वो उसके घर पर.

खीर लोमड़ी लेकर आयी
एक बड़ी चौड़ी थाली में.
खीर न उसके मुंह में आती
चोंच ड़ालता जब थाली में.

भूखा सारस जब घर आया
गुस्से से वह उबल रहा था.
कैसे सबक सिखाऊँ उसको
सोच सोच वह बिखर रहा था.

कहा लोमड़ी तुम घर आना,
उसने मीठी खीर बनायी.
सारस घर जब आयी लोमड़ी,
खीर भरी थी रखी सुराही.

कोशिश बहुत लोमड़ी ने की
नहीं खीर तक वह जा पायी.
भूखी लौट चली वह घर को,
मन ही मन थी वह खिसयाई.

करो दोस्त से गर चालाकी,
सदां नतीजा उल्टा होगा.
खो दोगे तुम एक दोस्त को
और व्यर्थ शर्माना होगा. 

कैलाश शर्मा 

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