गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

आओ सब मिल पेड़ लगायें

आओ सब मिल पेड़ लगायें,
  पौधा एक एक अपनायें.

घर में या बगिया में बाहर,
जहां जगह एक पौध लगायें.
ध्यान रखें पानी देने का,
और खाद भी कभी मिलायें.

मम्मा रखती ध्यान तुम्हारा,
ध्यान रखो पौधे का वैसे.
जैसे तुम हंसते हो हर पल,
मुस्काएगा पौधा भी वैसे.

साथ बढ़ोगे तुम दोनों ही,
एक अपनापन जुड़ जायेगा.
बचपन का ये साथ तुम्हारा,
जीवन भर खुशियाँ लायेगा.

एक एक पेड़ मिल कर के, 
जग में हरियाली लायेंगे.
यह धरा हमारी हर्षायेगी,
उसको नव जीवन लायेंगे.

कैलाश शर्मा 

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

बगुला और केकड़ा (काव्य - कथा)


एक तालाब किनारे बगुला
गुमसुम बनकर खड़ा हुआ था.
कैसे पाऊँ मछली मैं सारी,
मन ही मन यह सोच रहा था.

एक केकड़ा और मछलियाँ
उस तलाब के अन्दर रहते.
रहता भरा सदां पानी से,
उसमें बड़े मजे से रहते.

गुमसुम खड़ा देख बगुले को
मछली ने था कारण पूछा.
बगुला बोला मैं हूँ ज्योतिषी,
पड़ने वाला है जल्द ही सूखा.

सुन भविष्यवाणी बगुले की,
चिंता में पड़ गयीं मछलियाँ.
बहुत केकड़े ने समझाया,
लेकिन समझी नहीं मछलियाँ.

बगुले से उनने विनती की,
उसने एक उपाय बताया.
साथ एक मछली को लेकर,
एक नया तालाब दिखाया.

वापिस आकर के मछली ने
उस तलाब की करी बढ़ाई.
जायेंगी हम सभी वहां पर 
सबने मिलक र राय बनाई.

लेकर मछली एक चोंच में,
नए तलाब में चला छोड़ने.
गया नहीं तलाब को लेकिन
पकड़ी राह दूसरी उसने.

एक पेड़ के नीचे जाकर
खाया उसने उस मछली को.
आखिर में जो बचीं हड्डियां,
वहीं फेंक दी उसने उनको.

धीरे धीरे सभी मछलियाँ
गयीं पेट बगुले के अन्दर.
बगुले ने केकड़े से पूछा
तुम को भी ले चलूँ वहां पर. 


साइज में था बड़ा केकड़ा,
नहीं चोंच में वह आ पाया.
बगुले ने तरकीब निकाली, 
अपनी गर्दन में लटकाया.

बगुला लेकर उड़ा गगन में,
पहुंचा जब वह पास पेड़ के.
शक जागा केकड़े के मन में,
पड़ी हड्डियां वहां देख के.

अपने ताकतवर पंजों से
बगुले का था गला दबाया.
जान गंवाई उस बगुले ने,
फल धोखा देने का पाया.

जैसा बोओगे बीज जमीं में,
वैसा ही तुम फल पाओगे.
बुरे काम का बुरा नतीजा
आज नहीं तो कल पाओगे.

कैलाश शर्मा 

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

शेर और लकड़हारा (काव्य-कथा)

जब भी शेर शिकार को जाता,
साथ सियार, कौआ भी जाते.
जो भी बचता था शिकार से,
वे दोनों मिलजुल कर खाते.


एक लकड़हारा जाता था जंगल,
शेर अकेला, आया पीछे से.
देख लकड़हारा घबराया,
करने लगा बात हिम्मत से.


बात लकड़हारे की रुचिकर थीं,
सुन कर मज़ा उसे था आया.
चखा लकड़हारे का खाना,
स्वाद शेर के मन को भाया.


उसके साथी साथ नहीं थे,
उस दिन शेर अकेला ही था.
सादा भोज लकड़हारे का 
भुला गया खाना शिकार का.


छोड़ दिया जाना शिकार पर 
खाता साथ लकड़हारे के.
उसके न शिकार जाने से 
कौआ सियार रहते थे भूखे.


छुप कर किया शेर का पीछा,
देखा उसे रोटियाँ खाते.
चलता रहा अगर ऐसा ही,
पड़ जायेंगे खाने के लाले.


साथ शेर लकड़हारे का
कैसे टूटे प्लान बनाये.
विनती करी शेर से उन ने
उन्हें दोस्त से भी मिलवाये.


होकर राजी, साथ उन्हें ले 
चला लकड़हारे से मिलने.
देखा उन्हें दूर से आते,
लगा तुरत पेड़ पर चढ़ने.


बहुत कहा लकड़हारे से,
मगर नहीं वह नीचे आया.
खोकर एक मित्र सच्चे को,
शेर बहुत मन में पछताया.


अपने किसी दोस्त की बातें
अन्य किसी को नहीं बताना.
है आसान दोस्ती करना,
लेकिन मुश्किल उसे निभाना.


कैलाश शर्मा 

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