रविवार, 20 मई 2012

सच्चा दोस्त

सच्चा दोस्त मिले मुश्किल से,
कभी व्यर्थ न झगड़ा करना.
मिलजुल कर के साथ खेलना,
कभी न अपना तेरा करना.

धनी, गरीब, धर्म का अंतर,
कभी न तुम दीवार बनाना.
हो गरीब गर मित्र तुम्हारा,
उसे न यह अहसास दिलाना.

था गरीब सुदामा कितना,
मगर कृष्ण को सबसे प्यारा.
सदा साथ देकर के उसका,
रचा एक इतिहास था न्यारा.

मतलब से जो करे दोस्ती,
दोस्त न वो पक्का होता है.
जिसमें कोई स्वार्थ नहीं हो,
दोस्त वही सच्चा होता है.

कैलाश शर्मा 

मंगलवार, 8 मई 2012

अंगूर खट्टे हैं (काव्य-कथा)

एक लोमड़ी भूखी प्यासी,
घूम रही थी इधर उधर.
बाग एक अंगूरों का था 
आया उसको तभी नज़र.

पके, घने अंगूर थे  ऊंचे,
देख उन्हें था मन ललचाया.
अपने पैरों पर वह उछली,
पंजा उन तक पहुँच न पाया.

बार बार की उछल कूद से
भूख प्यास थी और बढ गयी.
पहुँच न पायी अंगूरों तक,
थक कर उसकी आस गुम गयी.

खट्टे अंगूरों की खातिर,
समय व्यर्थ में यहां गंवाया.
अंगूरों को खट्टा कह कर,
था निराश मन को समझाया.

काम अगर ताकत से बाहर,
नहीं काम में दोष निकालो.
दोष दूसरों को देने से पहले,
बेहतर अपनी सीमा पहचानो.

कैलाश शर्मा 
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