बुधवार, 29 अगस्त 2012

तस्लीम परिकल्पना सम्मान-2011

लखनऊ में २७ अगस्त, २०१२ को आयोजित 'अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मलेन' में मुझे 'वर्ष के श्रेष्ठ बाल रचनाओं के लेखक' के रूप में 'तस्लीम  परिकल्पना सम्मान-२०११' से नवाजा गया. 

परिकल्पना समूह और सभी मित्रों के स्नेह, प्रोत्साहन और शुभकामनाओं के लिये हार्दिक आभार.

कैलाश शर्मा 

शनिवार, 11 अगस्त 2012

मगरमच्छ और बन्दर (काव्य-कथा)

नदी किनारे एक टापू पर
रहता एक अकेला बन्दर.
मीठे फल से पेड़ लदे थे,
साथी था न कोई वहाँ पर.

मगरमच्छ तट पर था आया,
उसे देखकर बन्दर हर्षाया.
दिन भर बात रहे वे करते,
मीठे फल खा मज़ा था आया.

गहरे दोस्त बन गये दोनों,
रोज़ रोज़ तट पर मिलते थे..
दुनियां भर की बातें करते,
मीठे मीठे फल चखते थे.

कुछ फल दिए मगर को एक दिन
जा कर भाभी को उन्हें खिलाना. 
कैसा स्वाद लगा इन फल का,
कल कल आकर के हमें बताना.

मीठे लगे थे फल पत्नी को,
रोज़ मगर घर को ले जाता.
बढने लगा मगर बन्दर में
प्रतिदिन और प्रेम का नाता.

मगरमच्छ पत्नी ने सोचा, 
बन्दर कितने मीठे फल खाता.
मांस भी उसका मीठा होगा
खाने को यदि वह मिल जाता.

मगरमच्छ से एक दिन बोली
मैं बीमार, न बच पाऊँगी.
अगर कलेजा बन्दर का खाऊँ
शायद ठीक मैं हो जाऊँगी.

मुझे कलेजा खाना बन्दर का
मगरमच्छ पत्नी ने ज़िद ठानी.
समझाया था बहुत मगर ने,
लेकिन उसने थी एक न मानी.

दिल में बहुत दुखी होकर के
मगरमच्छ टापू पर आया.
बन्दर से बोला वह हंस कर,
भाभी ने घर तुम्हें बुलाया.

मगरमच्छ की पीठ बैठ कर
बन्दर चला मगर के घर पर.
नदी बीच में जब वह पहुंचा
मगरमच्छ ने कहा मित्रवर.

पत्नी ने खाने को कलेजा, 
दावत कह बुलवाया तुमको.
नहीं कोई दावत है घर पर ,
धोखा देने का दुःख मुझको.

बन्दर समझ गया चालाकी
लेकिन हंस कर के वह बोला.
मेरा कलेजा तो रखा पेड़ पर
क्यों चलने से पहले न बोला.

कुछ भी कर सकता हूँ मित्र को
वापिस मुझको तट पर ले जाओ.
ले कर कलेजा आता हूँ वापिस,
भाभी को देकर स्वस्थ कराओ.

मगरमच्छ वापिस तट आया,
कूद पेड़ पर पहुंचा बन्दर.
बोला बिलकुल मूर्ख हो तुम तो
रखता कलेजा कौन पेड़ पर.

तुमने धोखा दिया मित्र को,
हुई खत्म मित्रता हमारी.
हो कर दुखी मगर था लौटा
पछताता गलती पर भारी.

नहीं मित्र को धोखा देना 
वर्ना सदा ही पछताओगे.
टूटेगा विश्वास सदा को 
और मित्र भी खो जाओगे.

कैलाश शर्मा 
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