बुधवार, 28 नवंबर 2012

तीन मछलियाँ (काव्य-कथा)


एक सरोवर था जंगल में,
उसमें तीन मछलियाँ रहतीं.
था स्वभाव अलग तीनों का,
लेकिन थी मिलकर के रहतीं.

बुद्धिमान थी पहली मछली,
दूजी मछली मगर चतुर थी.
मगर तीसरी मछली जो थी
बुद्धि से कमजोर बहुत थी.

बुद्धिमान मछली थी हर पल
चारों और नजर रखती थी.
कहाँ क्या हो रहा जंगल में
इसकी उसे खबर रहती थी.

दो मछुआरों की कुछ बातें
एक दिन उसके कान में आयीं.
कल डालेंगे जाल यहाँ पर
बहुत मछलियाँ नजर हैं आयीं.

बुद्धिमान मछली ने जाकर
दोनों मित्रों को बात बताई.
नहर जुडी तालाब से जो है
उससे भाग चलें हम भाई.

दोनों मछली हुई न राजी,
वही अकेली गयी नहर में.
अगले दिन दोनों ही मछली
मछुआरे के फंसी जाल में.

मछुआरों ने सभी मछलियाँ
खींच जाल डालीं जमीन पर.
मछली चतुर हिले डुले बिन
पडी रही चुपचाप जमीं पर.

उसे मरा समझ मछुआरे
लगे छांटने बाकी मछली को.
उछल कूद पहुँची पानी में
मछली चतुर देख मौके को.

बुद्धू मछली परेशान हो
उलटी सीधी पलट रही थी.
मछुआरों ने जब ये देखा
मार उसे शान्त कर दी थी.

बुद्दिमान मछली कुछ दिन में
फिर वापिस तालाब में आयी.
मछली चतुर हुई खुश मिलकर,
उसने उसको सब बात बताई.

बुद्धि का उपयोग न करता,
उचित सलाह जो नहीं मानता.
अपनी हानि स्वयं वह करता
और है फिर पछताना पड़ता.

कैलाश शर्मा 

सोमवार, 12 नवंबर 2012

आओ सब एक दीप जलायें

                    **दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं** 

आओ सब एक दीप जलायें,
मिलजुल कर त्यौहार मनायें.
भेद भाव के अंधियारे को 
मिलकर के हम आज भगायें.

किसी भी घर न हो अंधियारा,
एक दीप हर द्वार जलायें.
एक एक टुकड़ा मिठाई का
मिल कर साथ सभी के खायें.

फुलझडियां, अनार, पटाखे,
मिल कर के हम साथ चलायें.
लेकिन इतना ध्यान रखें हम 
पर्यावरण न दूषित हो जायें.

हर त्यौहार खुशी लाता है,
प्रेम प्रीत से सभी मनायें.
धर्म जाति का भेद भुलाके,
आओ सबको गले लगायें.

कैलाश शर्मा  
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