बुधवार, 9 जनवरी 2013

अजनबी पर विश्वास न करना (काव्य-कथा)


एक जंगल में घना पेड़ था,
उसके कोटर में तीतर रहता.
उसका कौआ ख़ास दोस्त था,
वह जुआर के खेत में रहता.

कौए से मिलने की इच्छा से,
तीतर उड़ कर गया खेत पर.
एक खरगोश ने पीछे आकर,
कब्ज़ा किया उसके कोटर पर.

जब तीतर घर आया शाम को,
कोटर में खरगोश को देखा.
तीतर बोला तुम बाहर निकलो,
नहीं जानते है यह घर मेरा?

जब होने लगी बहस दोनों में,
हुए इकट्ठे जंगल के जानवर.
बोले खरगोश से बाहर आओ,
यह तो है तीतर का ही घर.

बोला खरगोश जो घर में रहता,
उसका ही वह घर कहलाता.
मैं बैठा हूँ इस कोटर के अन्दर,
इस पर मेरा हक़ बन जाता.

सभी विचार विमर्श कर के भी
वे नहीं कोई निर्णय कर पाये.
तब सलाह दी बुज़ुर्ग हिरन ने,
निष्पक्ष व्यक्ति को ढूँढा जाये.

तीतर व खरगोश चल दिये,
किसी निष्पक्ष की तलाश में.
उनको मिली जंगली बिल्ली,
जो बैठी थी सुनसान राह में.

तुम क्या हमारा न्याय करोगी,
बिल्ली से बोले वे दोनों जाकर.
बिल्ली बोली मैं ऊँचा सुनती,
कहो बात तुम पास में आकर.

जैसे ही दोनों पास में आये,
बिल्ली झपट पडी दोनों पर.
पकड़ उन्हें अपने हाथों से,
खाया दोनों को खुश होकर.

जो साथी, हमदर्द तुम्हारे,
उनकी राय सदा ही मानो.
अजनबियों की राय हमेशा
सोच समझ कर ही मानो.

कैलाश शर्मा 
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