गुरुवार, 30 मई 2013

बच्चे तो कच्ची मिट्टी हैं


बच्चे तो कच्ची मिट्टी हैं,
जैसे चाहो ढल जायेंगे.
जो राह दिखाओगे उनको,
उन राहों पे बढ़ जायेंगे.

कच्ची मिट्टी के बरतन को
कोमल हाथों गढ़ना होता.
आने पर सही समय पर ही
भट्टी में है तपना होता.

बच्चों का बचपन मत छीनो,
न खेलकूद से उनको रोको.
उनकी रुचियों का ध्यान रखो,
न व्यर्थ उन्हें हर पल टोको.

संस्कार जो ड़ालें बचपन में,
वह ही स्वभाव में ढल जाते.
देते जो शिक्षा हैं बच्चों को,
उसको ही वे आगे अपनाते.

बच्चे तो एक धरोहर हैं,
सपना आने वाले कल का.
जैसा आज उन्हें तुम दोगे,
कल वैसा ही होगा उनका.

....कैलाश शर्मा 

मंगलवार, 7 मई 2013

गर्मी की छुट्टियाँ हो गयीं


अब पुस्तक हैं बंद हो गयीं,
गर्मी की छुट्टियाँ हो गयीं.

अब न ज़ल्दी उठना होता,
न स्कूल की चिंता होती.
वीडियो गेम हैं रोज़ खेलते,
कार्टून पर रोक न होती.

अब मस्ती होती है दिन भर,
चिंतायें सब ख़त्म हो गयीं.

जायेंगे घूमने पहाड़ पर,
हम ऊँचे ऊँचे पहाड़ देखेंगे.
कहीं पे बहते झरने होंगे,
नयी नयी जगह देखेंगे.

ठंडा मौसम होगा पहाड़ पर,
गर्मी से छुट्टी है हो गयी.

हम जायेंगे नानी के भी,
रोज नए पकवान खायेंगे.
घूमेंगे नाना के साथ में,
रोज़ नए टॉयज लायेंगे.

रोज़ सुनेंगे हम नयी कहानी,
खुशियों की बरसात हो गयी.

खुशी खुशी स्कूल जायेंगे,
फिर हम अपना बैग सजाकर.
होगी थकान सब दूर हमारी,
होगी पढ़ाई फिर मन लगाकर.

जब स्कूल खुलेंगे तब देखेंगे,
अभी तो मस्ती है हो गयी.

....कैलाश शर्मा 
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