गुरुवार, 22 अगस्त 2013

कौआ और सांप (काव्य-कथा)

एक पेड़ पर एक कौए ने
अपने लिए बनाया घर था.
पास दूसरे पेड़ के नीचे,
एक सांप का भी घर था.

कौए ने कुछ दिनों बाद में
दिये घोंसले में थे अंडे.
सांप लगा सोचने मन में,
कैसे खा पायेगा वे अंडे.

सुबह गया उड़कर के कौआ
खाने पानी की तलाश में.
सांप चढ़ गया पेड़ के ऊपर
कौए अंडों की तलाश में.

खा कर सब कौए के अंडे,     
लौटा सांप था अपने घर में.
कौआ जब वापिस था आया,
मिले न अंडे उसको घर में.

कई बार हुआ जब ऐसा,
बैठा छुप कर एक पेड़ पर.
निकला सांप एक बांबी से
अंडे खाने को चढ़ा पेड़ पर.

सांप देख कौआ था चिंतित,
मुक्ति मिले कैसे दुश्मन से.
एक दिन उड़ते उड़ते उसने,
देखा सुन्दर ताल गगन से.

महल पास था एक सरोवर
रानी सखियों साथ वहां थी.
वस्त्र, आभूषण रखे किनारे,
जल क्रीड़ा में सभी मग्न थीं.

उठा चोंच में हार कीमती,
कौआ भागा उड़ तेजी से.
शोर मचाने पर रानी के,
सैनिक भागे उसके पीछे.

कौआ ऊपर उड़ता जाता,
सैनिक भाग रहे थे पीछे.
पास पहुंच करके बांबी के,
डाला हार था उसमें नीचे.

पहुंचे सैनिक जब बांबी पर,
लगे तोड़ने उसको भालों से.
सांप निकल जब बाहर आया
मार दिया उसको भालों से.

लेकर हार गए सब सैनिक,
दुश्मन का था अंत हो गया.    
हो गये सुरक्षित उसके अंडे,
भय कौए का दूर हो गया.

बुद्धि का उपयोग जो करता,
सब बाधा से पार वो पाता.
कितना भी हो बलशाली शत्रु,
बुद्धि सम्मुख ठहर न पाता.

....कैलाश शर्मा


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