इस सर्दी से हमें बचाओ.
ओढ़ रजाई तुम कोहरे की
बड़े मज़े में सोए रहते.
ठंड और कोहरे के कारण
हम हैं क़ैद घरों में रहते.
दांत किटकिटाने लगे हमारे,
अब तो तुम बाहर आ जाओ.
सडकों पार सोने वालों की
तकलीफों के बारे में सोचो.
जिनके तन पर वस्त्र नहीं हैं,
उन के बारे में भी सोचो.
आ जाओ बाहर रजाई से,
अपनी धूप हमें दिखलाओ.
पानी जम कर बर्फ़ हो गया,
ठंडी हवा है तन को लगती.
पशु पक्षी बैठे हैं छुप कर,
लेकिन भूख नहीं है बुझती.
बहुत सो लिए सूरज भैया,
नींद छोड़ बाहर आ जाओ.
....कैलाश शर्मा
nice sir
जवाब देंहटाएंयहाँ रहते हुए तो मुझे भी यह बाल कविता रोज़ ही गानी पड़ेगी...:)) बहुत सुंदर बाल कविता।
जवाब देंहटाएंमीठी मीठी ... कुनमुनाती सी कविता ... बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कविता ....
जवाब देंहटाएंबच्चों को सर्दी वाकई परेशान कर रही है। सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना..
जवाब देंहटाएंसूरज भैय्या जल्दी बहार आये तो अच्छा है..
ठंडी कि वजह से मम्मी कही बहार जाने नहीं देती...
:-)
शुक्रिया....
जवाब देंहटाएंBahut badhiya. Bahut sundar bal geet .
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कविता ....
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें आदरणीय-
sacchi .......hum sab kay man ki baat
जवाब देंहटाएंसूरज को तो बाहर आना ही है ..बहुत सर्दी है..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
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