भेड़ मुझे तुम यह बतलाओ
मेरे मुंह से क्या बदबू आती।
डरी हुई वह भेड़ थी बोली
मुझको सच में बदबू आती।।
मेरे मुंह से क्या बदबू आती।
डरी हुई वह भेड़ थी बोली
मुझको सच में बदबू आती।।
सुन कर आया क्रोध शेर को
उसने उसका गला दबाया।
बिन सोचे सच कहने का फल
देकर अपनी जान था पाया।।
उसने उसका गला दबाया।
बिन सोचे सच कहने का फल
देकर अपनी जान था पाया।।
एक भेड़िया फिर पड़ा सामने
शेर ने दी आवाज थी उसको।
शेर ने पूछा कि उसके मुंह से
क्या सच बदबू आती उसको।।
शेर ने दी आवाज थी उसको।
शेर ने पूछा कि उसके मुंह से
क्या सच बदबू आती उसको।।
चापलूस था बहुत भेड़िया
बोला तुम जंगल के राजा।
कैसे बू आ सकती मुंह से
सांस आ रही ताज़ा ताज़ा।।
बोला तुम जंगल के राजा।
कैसे बू आ सकती मुंह से
सांस आ रही ताज़ा ताज़ा।।
बात चापलूसी की सुन कर
गुस्सा बहुत शेर को आया।
उसने बहुत तेज गुर्रा कर
उसको फ़ौरन दूर भगाया। ।
गुस्सा बहुत शेर को आया।
उसने बहुत तेज गुर्रा कर
उसको फ़ौरन दूर भगाया।
एक लोमड़ी उधर से गुज़री
नज़र पड़ी शेर की उस पर।
उसको उसने पास बुलाया
पहुँची पास शेर के डर कर। ।
नज़र पड़ी शेर की उस पर।
उसको उसने पास बुलाया
पहुँची पास शेर के डर कर।
शेर ने पूछा सच कहो लोमड़ी
मेरे मुंह से क्या बदबू आती।
बोली नाक बंद मेरी ज़ुकाम से
इस कारण मैं सूंघ न पाती। ।
मेरे मुंह से क्या बदबू आती।
बोली नाक बंद मेरी ज़ुकाम से
इस कारण मैं सूंघ न पाती।
सुन कर बात लोमड़ी की था
शेर न उससे कुछ कह पाया।
अपने रस्ते चला गया वह
उसने उसको तुरत भगाया। ।
शेर न उससे कुछ कह पाया।
अपने रस्ते चला गया वह
उसने उसको तुरत भगाया।
जैसी जहाँ परिस्थिति होती
वैसा वहां आचरण करता।
कभी न संकट में वह आता
जीवन उसका सुखमय रहता। ।
वैसा वहां आचरण करता।
कभी न संकट में वह आता
जीवन उसका सुखमय रहता।
....कैलाश शर्मा