शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

मीठी सीख

हे प्रिय बालक ! लड़ना छोडो,
क्रोध कपट से भी मुख मोड़ो.

कड़वे वचन कभी मत बोलो,
सदा मिठास वचन में घोलो.

मधुर वचन जो बालक बोलें,
मन चाहे जहां घूमत डोलें.

जो सबको अपना सा जाने,
उनको सब अपना ही माने.

मदद सदा मित्रों की करते,
उन पर मित्र भरोसा करते.

जो भी सद्गुण अपनाते हैं,
जग में कीर्ति सदा पाते हैं.

वंश, जाति का नाम बढाते,
देश विदेश में गौरव पाते.

बोलो ! तुम भी यही करोगे,
मात-पिता मन मोद भरोगे.

प्रभा तिवारी,
भोपाल 

13 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चों को अच्छे सीख देती सार्थक रचना

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  2. बहुत सुन्दर प्रेरणा दायक कविता| धन्यवाद|

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  3. प्रेरणा दायक सुन्दर बाल कविता ...आभार |

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  4. बहुत ही सुंदर और प्रेरक रचना।
    इसे तो कक्षा से एक से पांच तक की सिलेबस में होना चाहिए।

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  5. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  6. बच्चों के लिए सुंदर और उपयोगी संस्कार भर दिए हैं आपने इस कविता में. ऐस साहित्य की कद्र की जानी चाहिए.

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  7. बहुत सुन्दर सीख देती कविता |

    जवाब देंहटाएं
  8. कड़वे वचन कभी मत बोलो,
    सदा मिठास वचन में घोलो.

    मधुर वचन जो बालक बोलें,
    मन चाहे जहां घूमत डोलें.

    जो सबको अपना सा जाने,
    उनको सब अपना ही माने.

    सुन्दर बाल कविता.आभार

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  9. aaj bachchon ko blog se jodna hamari zimmedari hai.mujhe khushi hai aap is karya ko kushalta se anjam de rahe hain.aapki rachnayen prashasneey hain.

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