एक तालाब किनारे बगुला
गुमसुम बनकर खड़ा हुआ था.
मन ही मन यह सोच रहा था.
एक केकड़ा और मछलियाँ
उस तलाब के अन्दर रहते.
रहता भरा सदां पानी से,
उसमें बड़े मजे से रहते.
गुमसुम खड़ा देख बगुले को
मछली ने था कारण पूछा.
बगुला बोला मैं हूँ ज्योतिषी,
पड़ने वाला है जल्द ही सूखा.
सुन भविष्यवाणी बगुले की,
चिंता में पड़ गयीं मछलियाँ.
बहुत केकड़े ने समझाया,
लेकिन समझी नहीं मछलियाँ.
बगुले से उनने विनती की,
उसने एक उपाय बताया.
साथ एक मछली को लेकर,
एक नया तालाब दिखाया.
वापिस आकर के मछली ने
उस तलाब की करी बढ़ाई.
जायेंगी हम सभी वहां पर
सबने मिलक र राय बनाई.
लेकर मछली एक चोंच में,
नए तलाब में चला छोड़ने.
गया नहीं तलाब को लेकिन
पकड़ी राह दूसरी उसने.
एक पेड़ के नीचे जाकर
खाया उसने उस मछली को.
आखिर में जो बचीं हड्डियां,
वहीं फेंक दी उसने उनको.
धीरे धीरे सभी मछलियाँ
गयीं पेट बगुले के अन्दर.
बगुले ने केकड़े से पूछा
तुम को भी ले चलूँ वहां पर.
साइज में था बड़ा केकड़ा,
नहीं चोंच में वह आ पाया.
बगुले ने तरकीब निकाली,
अपनी गर्दन में लटकाया.
बगुला लेकर उड़ा गगन में,
पहुंचा जब वह पास पेड़ के.
शक जागा केकड़े के मन में,
पड़ी हड्डियां वहां देख के.
अपने ताकतवर पंजों से
बगुले का था गला दबाया.
जान गंवाई उस बगुले ने,
फल धोखा देने का पाया.
जैसा बोओगे बीज जमीं में,
वैसा ही तुम फल पाओगे.
बुरे काम का बुरा नतीजा
आज नहीं तो कल पाओगे.
कैलाश शर्मा