नदी किनारे एक टापू पर
रहता एक अकेला बन्दर.
मीठे फल से पेड़ लदे थे,
साथी था न कोई वहाँ पर.
मगरमच्छ तट पर था आया,
उसे देखकर बन्दर हर्षाया.
दिन भर बात रहे वे करते,
मीठे फल खा मज़ा था आया.
गहरे दोस्त बन गये दोनों,
रोज़ रोज़ तट पर मिलते थे..
दुनियां भर की बातें करते,
मीठे मीठे फल चखते थे.
कुछ फल दिए मगर को एक दिन
जा कर भाभी को उन्हें खिलाना.
कैसा स्वाद लगा इन फल का,
कल कल आकर के हमें बताना.
मीठे लगे थे फल पत्नी को,
रोज़ मगर घर को ले जाता.
बढने लगा मगर बन्दर में
प्रतिदिन और प्रेम का नाता.
मगरमच्छ पत्नी ने सोचा,
बन्दर कितने मीठे फल खाता.
मांस भी उसका मीठा होगा
खाने को यदि वह मिल जाता.
मगरमच्छ से एक दिन बोली
मैं बीमार, न बच पाऊँगी.
अगर कलेजा बन्दर का खाऊँ
शायद ठीक मैं हो जाऊँगी.
मुझे कलेजा खाना बन्दर का
मगरमच्छ पत्नी ने ज़िद ठानी.
समझाया था बहुत मगर ने,
लेकिन उसने थी एक न मानी.
दिल में बहुत दुखी होकर के
मगरमच्छ टापू पर आया.
बन्दर से बोला वह हंस कर,
भाभी ने घर तुम्हें बुलाया.
मगरमच्छ की पीठ बैठ कर
बन्दर चला मगर के घर पर.
नदी बीच में जब वह पहुंचा
मगरमच्छ ने कहा मित्रवर.
पत्नी ने खाने को कलेजा,
दावत कह बुलवाया तुमको.
नहीं कोई दावत है घर पर ,
धोखा देने का दुःख मुझको.
बन्दर समझ गया चालाकी
लेकिन हंस कर के वह बोला.
मेरा कलेजा तो रखा पेड़ पर
क्यों चलने से पहले न बोला.
कुछ भी कर सकता हूँ मित्र को
वापिस मुझको तट पर ले जाओ.
ले कर कलेजा आता हूँ वापिस,
भाभी को देकर स्वस्थ कराओ.
मगरमच्छ वापिस तट आया,
कूद पेड़ पर पहुंचा बन्दर.
बोला बिलकुल मूर्ख हो तुम तो
रखता कलेजा कौन पेड़ पर.
तुमने धोखा दिया मित्र को,
हुई खत्म मित्रता हमारी.
हो कर दुखी मगर था लौटा
पछताता गलती पर भारी.
नहीं मित्र को धोखा देना
वर्ना सदा ही पछताओगे.
टूटेगा विश्वास सदा को
और मित्र भी खो जाओगे.
कैलाश शर्मा
रहता एक अकेला बन्दर.
मीठे फल से पेड़ लदे थे,
साथी था न कोई वहाँ पर.
मगरमच्छ तट पर था आया,
उसे देखकर बन्दर हर्षाया.
दिन भर बात रहे वे करते,
मीठे फल खा मज़ा था आया.
गहरे दोस्त बन गये दोनों,
रोज़ रोज़ तट पर मिलते थे..
दुनियां भर की बातें करते,
मीठे मीठे फल चखते थे.
कुछ फल दिए मगर को एक दिन
जा कर भाभी को उन्हें खिलाना.
कैसा स्वाद लगा इन फल का,
कल कल आकर के हमें बताना.
मीठे लगे थे फल पत्नी को,
रोज़ मगर घर को ले जाता.
बढने लगा मगर बन्दर में
प्रतिदिन और प्रेम का नाता.
मगरमच्छ पत्नी ने सोचा,
बन्दर कितने मीठे फल खाता.
मांस भी उसका मीठा होगा
खाने को यदि वह मिल जाता.
मगरमच्छ से एक दिन बोली
मैं बीमार, न बच पाऊँगी.
अगर कलेजा बन्दर का खाऊँ
शायद ठीक मैं हो जाऊँगी.
मुझे कलेजा खाना बन्दर का
मगरमच्छ पत्नी ने ज़िद ठानी.
समझाया था बहुत मगर ने,
लेकिन उसने थी एक न मानी.
दिल में बहुत दुखी होकर के
मगरमच्छ टापू पर आया.
बन्दर से बोला वह हंस कर,
भाभी ने घर तुम्हें बुलाया.
मगरमच्छ की पीठ बैठ कर
बन्दर चला मगर के घर पर.
नदी बीच में जब वह पहुंचा
मगरमच्छ ने कहा मित्रवर.
पत्नी ने खाने को कलेजा,
दावत कह बुलवाया तुमको.
नहीं कोई दावत है घर पर ,
धोखा देने का दुःख मुझको.
बन्दर समझ गया चालाकी
लेकिन हंस कर के वह बोला.
मेरा कलेजा तो रखा पेड़ पर
क्यों चलने से पहले न बोला.
कुछ भी कर सकता हूँ मित्र को
वापिस मुझको तट पर ले जाओ.
ले कर कलेजा आता हूँ वापिस,
भाभी को देकर स्वस्थ कराओ.
मगरमच्छ वापिस तट आया,
कूद पेड़ पर पहुंचा बन्दर.
बोला बिलकुल मूर्ख हो तुम तो
रखता कलेजा कौन पेड़ पर.
तुमने धोखा दिया मित्र को,
हुई खत्म मित्रता हमारी.
हो कर दुखी मगर था लौटा
पछताता गलती पर भारी.
नहीं मित्र को धोखा देना
वर्ना सदा ही पछताओगे.
टूटेगा विश्वास सदा को
और मित्र भी खो जाओगे.
कैलाश शर्मा
नहीं मित्र को धोखा देना
जवाब देंहटाएंवर्ना सदा ही पछताओगे.
टूटेगा विश्वास सदा को
और मित्र भी खो जाओगे.
एकदम सही बात..
अच्छी सिख देती
बहुत ही बेहतरीन रचना...
:-)
कॉफ़ी इंतज़ार के बाद पढने को मिली यह काव्य -मय बोध कथा .शुक्रिया ,कृपया यहाँ भी तवज्जो दें -
जवाब देंहटाएंशनिवार, 11 अगस्त 2012
कंधों , बाजू और हाथों की तकलीफों के लिए भी है का -इरो -प्रेक्टिक
यह कहानी बहुत बार सुनी पर इसको काव्य रूप में इतने सुन्दर तरीके से ढाला है की कहानी का मजा दोगुना हो गया बहुत अच्छी लगी ये प्रस्तुति बधाई आपको
जवाब देंहटाएंक्यों टिपण्णी लिखूं इतने सुन्दर कथा को गीत का स्वरुप देने के लिए सीधे प्रणाम ही करता हूँ ,मित्रता की ये चिर नवीन कहानी आपने बहुत ही सुन्दर बनाई है
जवाब देंहटाएंनहीं मित्र को धोखा देना
जवाब देंहटाएंवर्ना सदा ही पछताओगे.
टूटेगा विश्वास सदा को
और मित्र भी खो जाओगे.
आपकी रचना अद्धभुत है .... नमन आपको .... !!
मित्रता का अनुभव मेरा भी कटु ही है .... मन कसैला हो जाता है ....
मित्रताका सुन्दर मिशाल देती सुन्दर सार्थक रचना..
जवाब देंहटाएंनहीं मित्र को धोखा देना
जवाब देंहटाएंवर्ना सदा ही पछताओगे.
टूटेगा विश्वास सदा को
और मित्र भी खो जाओगे.....सुंदर कविता......
BAHUT SUNDAR KAVITA...RUPI KATHA..
जवाब देंहटाएंपोश्चर बदल बदल के लिखें ,खड़े होके लैप टॉप को सही ऊंचाई पे रखके लिखने का अभ्यास करें ,स्ट्रेचिंग करें बीस मिनिट बाद ...भले बीस सेकिंड के लिए पेशी को ब्रेक दें .शुक्रिया आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए यह श्रृंखला काई -रो -प्रेक्टिक ज़ारी है ... .कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंशनिवार, 11 अगस्त 2012
कंधों , बाजू और हाथों की तकलीफों के लिए भी है का -इरो -प्रेक्टिक
बचपन याद करवा दिया आपने एक बार फिर से
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंSundar bhaawaanuwaad.
जवाब देंहटाएं............
कितनी बदल रही है हिन्दी !
bachpan yaad aa gaya....
जवाब देंहटाएंबहुत ही मजेदार कविता। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंईद की दिली मुबारकबाद।
............
हर अदा पर निसार हो जाएँ...
आज 27/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंकहानी को बहुत खूबसूरती से काव्य में ढाला है ...
जवाब देंहटाएंवाह! ये कहिनी तो अच्छी है ही इसे कविता के रूप में पढ़कर और भी अच्छा लगा...:))
जवाब देंहटाएंबाल गीतकार ब्लोगर सम्मान आपको नहीं मिलेगा तो फिर किसे मिलेगा जिसने बाल गीतों को बोध कथा की सीख और सांगीतिकता एक साथ दी .बधाई भाई साहब !
जवाब देंहटाएंब्लोगर सम्मान मुबारक !कैंटन (मिशगन )के शतश :प्रणाम !नेहा एवं आदर सेवीरुभाई .
बुधवार, 29 अगस्त 201
मिलिए डॉ .क्रैनबरी से
मिलिए डॉ .क्रैनबरी से
बहुत बहुत आभार भाई जी....
हटाएंबहुत ही मजेदार कविता
हटाएंwaah aaj tak kahani roop me jise padha thaa aaj kavita roop me padh kar harshit aur achambhit hun ki kitni acchhi tarah se kahani ko kavita me dhaal diya.
जवाब देंहटाएंbadhayi.
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