एक राज्य
में एक था राजा,
बहुत
नेकदिल, बुद्धिमान था.
मंत्री
उसके सभी अनुभवी,
बुद्धिमान
सब से प्रधान था.
जा कर
प्रधान राजा से बोला
राजन मैं
अब वृद्ध हो गया.
मुक्त
करें अब दायित्वों से
निवृत्ति
का है समय हो गया.
राजा हुआ
प्रधान से सहमत
पर उसने
यह शर्त लगाई.
नया
प्रधान को चुनने पर ही
दायित्वों
से उन्हें रिहाई.
पूरे
राज्य में यह करी मुनादी,
जो भी
प्रधान है बनना चाहे.
अपने को
जो योग्य है समझे
वह स्वयं
राज दरबार में आये.
चार पुरुष
दरबार में आये,
पहला बोला
मैं वेदों का ज्ञाता.
और दूसरा फिर
यह बोला
क्या मेरा नहीं ज्ञान से नाता?
सुन
प्रधान ने सब की बातें,
कहा
परीक्षा मैं सबकी लूँगा.
जो
उत्तीर्ण है उसमें होगा,
उसको ही
मैं प्रधान चुनूँगा.
एक कमरे
में बंद करूंगा,
जिस में
दो दरवाजे होंगे.
एक दरवाजे
में अन्दर से,
दूजे में
बाहर से ताले होंगे.
बाहर पहले बिन चाबी आये,
होगा वही
प्रधान राज्य का.
बंद किया
कमरों में उनको,
लगा के
अन्दर, बाहर ताला.
पंडित जिन्हें घमंड ज्ञान पर अपने,
बैठे दोनों वेद, पुराण खोल कर.
बिन चाबी ताला खुलने की युक्ति,
मिली न उन्हें सब पोथी पढ़कर.
तीजा जन आदत से आलसी
सोचा कौन करे राजा की सेवा.
खा पी कर के मैं अब सोता,
मैं तो आया बस खाने को मेवा.
कुछ तो रहस्य ताला खुलने में,
चौथा युवक था लगा सोचने.
वह दरवाजे के पास में जाकर,
ताला छू कर के लगा देखने.
उसने जैसे ही ताले को छूआ,
खुल कर उसके हाथ आ गया.
दरवाजे से निकल के बाहर,
वह प्रधान के पास आ गया.
अपने साथ युवक को लेकर,
तब प्रधान दरबार में आया.
वह आकर राजा से बोला,
नया प्रधान मैं लेकर आया.
उसने राजा को बतलाया,
ताला केवल लटकाया था.
सब लोगों ने यह समझा,
ताला चाबी से बंद किया था.
राजा को पूरी बात बतायी,
बनने यह प्रधान योग्य है.
बुद्धि का उपयोग है करता,
मेघावी शिक्षित सुयोग्य है.
राजा था हर्षित चुनाव से,
निर्णय प्रधान का था भाया.
फिर उस युवक को राजा ने,
अपना नया प्रधान बनाया.
केवल पुस्तक ज्ञान न काफ़ी,
व्यवहारिक ज्ञान ज़रूरी होता.
जो कुछ जीवन तुम्हें सिखाता,
वह सब न पुस्तक में होता.
..कैलाश शर्मा