शनिवार, 25 जून 2011

खरगोश और कछुआ

                      आओ बच्चो  तुम्हें सुनायें, सुन्दर  एक कहानी,
                      जिसे सुनाया करती थीं बचपन में हमको नानी.

                                था खरगोश और एक कछुआ
                                 रहते थे मिल कर जंगल में.
                                 गहरे दोस्त  बहुत  दोनों थे,
                                 पर खरगोश घमंडी दिल में.

                              कछुआ चलता सरक सरक कर,
                                पर खरगोश  दौड़ कर जाता.
                                अपनी तेज  चाल के कारण,
                                कछुए को वह रोज चिढाता.

                               कछुए को दिखलाने नीचा,
                               उसने एक दिन शर्त लगाईं.
                               दौड़ लगाते हम पोखर तक,
                               पहले  कौन  पहुंचता  भाई.

                              सभी जानवर हुए इकट्ठे
                              उन दोनों की रेस देखने.
                              कोयल की सीटी बजने पर
                              लगे देख कछुए को हंसने.

                           निकल गया खरगोश था आगे,
                             उसने पीछे मुड़ कर देखा.
                             कहीं दूर तक न कछुआ था,
                             घना पेड़  एक  आगे देखा.

                            थोडा  आराम अभी  मैं  कर लूँ,
                            कछुआ  यहाँ  नहीं  पहुंचेगा.
                            मैं पलभर में पोखर जा सकता,
                            कछुआ  वहां  नहीं  पहुंचेगा.

                           कछुआ चलते धीरे धीरे आया,
                           था  खरगोश नींद में गहरी.
                           चौंक गया  खरगोश उठा जब,
                           शाम हो गयी थी अब गहरी.

                           लगा छलांग दौड़ जब पहुंचा,
                           पोखर पर कछुए  को पाया.
                           सभी जानवर हंस कर बोले,
                           कछुआ प्रथम दौड़ में आया.

                           नज़र रखो मंजिल पर हरदम,
                           कभी न आलस को अपनाओ.
                           नहीं किसी को छोटा समझो,
                           कभी घमंड न  मन में लाओ.

18 टिप्‍पणियां:

  1. jatak katha ko itni khoobsoorati se aapne kavita mein bandh diya hai..............kya kehne

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  2. ये कहानी कुछ सुनी सुनायी सी लगती है"

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  3. बाल मन के अनुरूप
    बहुत ही सुन्दर कहानी
    प्रस्तुत की है आपने इस रचना में!

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  4. कहानी को काव्यात्मक रूप बहुत खूबसूरती से दिया है ..

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  5. सटीक मात्राएँ लगायें हैं..गाकर सुनाने योग्य रचना है ये तो.. :)

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  6. बचपन में पढी कविता को आपने कविता में ढाल कर अच्छा काम किया है। बच्चों को गेय रुप में पसंद आएगी। वार्ता की 401 वीं पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  7. @ आपने शिक्षाप्रद बाल कथा को गेय कर दिया. प्रशंसनीय है.
    किन्तु आज के कुछ शिक्षाविद न जाने क्यों 'नैतिक कथाओं' से परहेज कर रहे हैं.
    उनका मानना है 'बच्चे सीख और शिक्षा के लिये रचनाओं को नहीं पढ़ते, वे केवल मनोरंजन के लिये ही रचनाओं को पढ़ते हैं.'
    अब ये कैसे समझाया जाये कि शिक्षा भी मनोरंजक तरीके से दी जा सकती है.

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  8. शिक्षा-प्रद प्रस्तुति

    बधाई ||

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  9. कछुआ - टाटा कर रहे , पूरे सारोकार |

    खरगोशों की फौज में, भरे पड़े मक्कार ||

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  10. कहानी को काव्यात्मक रूप देकर कहानी की सुन्दरता में चार चाँद लगादिए..धन्यवाद....

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  11. कहानी को काव्यात्मक रूप बहुत खूबसूरती से दिया है| धन्यवाद|

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  12. बहुत सुन्दर और प्यारी कहानी है जिसे मैंने बचपन में सुना था! बहुत अच्छा लगा इतने दिनों के बाद इस कहानी को दुबारा सुनकर! बेहतरीन प्रस्तुती!

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  13. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर
    शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत
    में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा
    जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    Feel free to surf my site संगीत

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  14. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-07-2015) को "कुछ नियमित लिंक और एक पोस्ट की समीक्षा" {चर्चा अंक - 2041} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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