जिसे सुनाया करती थीं बचपन में हमको नानी.
था खरगोश और एक कछुआ
रहते थे मिल कर जंगल में.
गहरे दोस्त बहुत दोनों थे,
पर खरगोश घमंडी दिल में.
कछुआ चलता सरक सरक कर,
पर खरगोश दौड़ कर जाता.
अपनी तेज चाल के कारण,
कछुए को वह रोज चिढाता.
कछुए को दिखलाने नीचा,
उसने एक दिन शर्त लगाईं.
दौड़ लगाते हम पोखर तक,
पहले कौन पहुंचता भाई.
सभी जानवर हुए इकट्ठे
उन दोनों की रेस देखने.
कोयल की सीटी बजने पर
लगे देख कछुए को हंसने.
निकल गया खरगोश था आगे,
उसने पीछे मुड़ कर देखा.
कहीं दूर तक न कछुआ था,
घना पेड़ एक आगे देखा.
थोडा आराम अभी मैं कर लूँ,
कछुआ यहाँ नहीं पहुंचेगा.
मैं पलभर में पोखर जा सकता,
कछुआ वहां नहीं पहुंचेगा.
कछुआ चलते धीरे धीरे आया,
था खरगोश नींद में गहरी.
चौंक गया खरगोश उठा जब,
शाम हो गयी थी अब गहरी.
लगा छलांग दौड़ जब पहुंचा,
पोखर पर कछुए को पाया.
सभी जानवर हंस कर बोले,
कछुआ प्रथम दौड़ में आया.
नज़र रखो मंजिल पर हरदम,
कभी न आलस को अपनाओ.
नहीं किसी को छोटा समझो,
कभी घमंड न मन में लाओ.
jatak katha ko itni khoobsoorati se aapne kavita mein bandh diya hai..............kya kehne
जवाब देंहटाएंये कहानी कुछ सुनी सुनायी सी लगती है"
जवाब देंहटाएंबाल मन के अनुरूप
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कहानी
प्रस्तुत की है आपने इस रचना में!
कहानी को काव्यात्मक रूप बहुत खूबसूरती से दिया है ..
जवाब देंहटाएंसटीक मात्राएँ लगायें हैं..गाकर सुनाने योग्य रचना है ये तो.. :)
जवाब देंहटाएंबचपन में पढी कविता को आपने कविता में ढाल कर अच्छा काम किया है। बच्चों को गेय रुप में पसंद आएगी। वार्ता की 401 वीं पोस्ट पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएं@ आपने शिक्षाप्रद बाल कथा को गेय कर दिया. प्रशंसनीय है.
जवाब देंहटाएंकिन्तु आज के कुछ शिक्षाविद न जाने क्यों 'नैतिक कथाओं' से परहेज कर रहे हैं.
उनका मानना है 'बच्चे सीख और शिक्षा के लिये रचनाओं को नहीं पढ़ते, वे केवल मनोरंजन के लिये ही रचनाओं को पढ़ते हैं.'
अब ये कैसे समझाया जाये कि शिक्षा भी मनोरंजक तरीके से दी जा सकती है.
मजेदार कविता।
जवाब देंहटाएं---------
विलुप्त हो जाएगा इंसान?
ब्लॉग-मैन हैं पाबला जी...
शिक्षा-प्रद प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबधाई ||
कछुआ - टाटा कर रहे , पूरे सारोकार |
जवाब देंहटाएंखरगोशों की फौज में, भरे पड़े मक्कार ||
कहानी को काव्यात्मक रूप देकर कहानी की सुन्दरता में चार चाँद लगादिए..धन्यवाद....
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti chhotawriters.blogspot.comhamare blog se bhi update rahe
जवाब देंहटाएंकहानी को काव्यात्मक रूप बहुत खूबसूरती से दिया है| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी लगी कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और प्यारी कहानी है जिसे मैंने बचपन में सुना था! बहुत अच्छा लगा इतने दिनों के बाद इस कहानी को दुबारा सुनकर! बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंसुन्दर और प्यारी कहानी है
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर
जवाब देंहटाएंशुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत
में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा
जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
..
Feel free to surf my site संगीत
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-07-2015) को "कुछ नियमित लिंक और एक पोस्ट की समीक्षा" {चर्चा अंक - 2041} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक