इस सर्दी से हमें बचाओ.
ओढ़ रजाई तुम कोहरे की
बड़े मज़े में सोए रहते.
ठंड और कोहरे के कारण
हम हैं क़ैद घरों में रहते.
दांत किटकिटाने लगे हमारे,
अब तो तुम बाहर आ जाओ.
सडकों पार सोने वालों की
तकलीफों के बारे में सोचो.
जिनके तन पर वस्त्र नहीं हैं,
उन के बारे में भी सोचो.
आ जाओ बाहर रजाई से,
अपनी धूप हमें दिखलाओ.
पानी जम कर बर्फ़ हो गया,
ठंडी हवा है तन को लगती.
पशु पक्षी बैठे हैं छुप कर,
लेकिन भूख नहीं है बुझती.
बहुत सो लिए सूरज भैया,
नींद छोड़ बाहर आ जाओ.
....कैलाश शर्मा