बुधवार, 28 सितंबर 2011

नकलची बन्दर (काव्य - कथा)

एक टोपियों का व्यापारी,
लौट रहा था घर गर्मी में.
सिर पर थी टोपी की गठरी,
कपड़े चिपक रहे थे तन में.

थक कर उसको चलते चलते,
छायादार पेड़ नजर था आया.
खूब लदे मीठे फल उस पर,
ठंडी  हवा, घनी  थी  छाया.

गठरी को वह नीचे रखकर,
थक कर लेट गया छाया में.
गहरी नींद आ गयी उसको,
ठंडी घनी पेड़ छाया में.

टूटी नींद तो उसने देखा,
उसकी गठरी खुली हुई थी.
बन्दर बैठे थे पेड़ों पर,
टोपी सिर पर लगी हुईं थी.

पाने को वापिस वो टोपियाँ,
उसने पत्थर बन्दर पर फेंके.
उसके बदले सब बन्दर ने,
तोड़ तोड़ फल उस पर फेंके.

लगा खुजाने सिर व्यापारी,
एक तरकीब समझ में आयी.
अपनी टोपी को उतार कर,
उन बन्दर की तरफ हिलायी.

व्यापारी ने फिर अपनी टोपी,
दूर जमीं पर जोर से फेंकी.
बन्दर होते सदां नकलची,
अपनी टोपी भी उनने फेंकी.


अपनी सभी टोपियाँ लेकर,
बांधी उसने अपनी गठरी.
खुश हो कर वह चला वहां से,
सिर पर रखकर के वो गठरी.


कोई भी विपत्ति जब आये,
धीरज अपना कभी न खोना.
सदां बुद्धि से राह निकलती, 
व्यर्थ  सदां  संकट  में रोना.  

13 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चों की सुन्दर कविता के लिए बधाई ||
    सत्साहस सबसे बड़े गुणों में एक |
    खूबसूरत प्रस्तुति ||
    http://dcgpthravikar.blogspot.com/2011/09/blog-post_26.html

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  2. बहुत खूबसूरत रचना , सुन्दर भाव ,बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूबसूरत रचना|
    नवरात्रि पर्व की मंगलकामनाएँ|

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही रोचक एवं प्रेरणादायी प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  5. शुभ नवरात्रों पर हार्दिक मंगल कामनाएं !!!

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर सन्देश देती हुई रोचक कविता ..

    जवाब देंहटाएं
  7. कोई भी विपत्ति जब आये,
    धीरज अपना कभी न खोना.
    सदां बुद्धि से राह निकलती,
    व्यर्थ सदां संकट में रोना

    बचपन में पढ़ी गद्य कहाँई का पद्य रूप मन को भा गया.संदेश की पंक्तियाँ विषेश रूप से मन-भायी.

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रिय कैलाश जी आज कल जागरण पर कम ....बाल रचना सुन्दर हम बच्चे खुश ...सुन्दर भाव प्यारी रचना मन को छू गयी ...

    ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं .....जय माता दी आप सपरिवार को ढेर सारी शुभ कामनाएं नवरात्रि पर -माँ दुर्गा असीम सुख शांति प्रदान करें
    थोडा व्यस्तता वश कम मिल पा रहे है सबसे क्षमा करना
    भ्रमर ५

    जवाब देंहटाएं
  9. कोई भी विपत्ति जब आये,
    धीरज अपना कभी न खोना.
    सदां बुद्धि से राह निकलती,
    व्यर्थ सदां संकट में रोना.

    सुन्दर सीख बालकथा को आपने बहुत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया आभार

    जवाब देंहटाएं

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