बच्चे तो कच्ची मिट्टी हैं,
जैसे चाहो ढल जायेंगे.
जो राह दिखाओगे उनको,
उन राहों पे बढ़ जायेंगे.
कच्ची मिट्टी के बरतन को
कोमल हाथों गढ़ना होता.
आने पर सही समय पर ही
भट्टी में है तपना होता.
बच्चों का बचपन मत छीनो,
न खेलकूद से उनको रोको.
उनकी रुचियों का ध्यान रखो,
न व्यर्थ उन्हें हर पल टोको.
संस्कार जो ड़ालें बचपन में,
वह ही स्वभाव में ढल जाते.
देते जो शिक्षा हैं बच्चों को,
उसको ही वे आगे अपनाते.
बच्चे तो एक धरोहर हैं,
सपना आने वाले कल का.
जैसा आज उन्हें तुम दोगे,
कल वैसा ही होगा उनका.
....कैलाश शर्मा