बच्चे तो कच्ची मिट्टी हैं,
जैसे चाहो ढल जायेंगे.
जो राह दिखाओगे उनको,
उन राहों पे बढ़ जायेंगे.
कच्ची मिट्टी के बरतन को
कोमल हाथों गढ़ना होता.
आने पर सही समय पर ही
भट्टी में है तपना होता.
बच्चों का बचपन मत छीनो,
न खेलकूद से उनको रोको.
उनकी रुचियों का ध्यान रखो,
न व्यर्थ उन्हें हर पल टोको.
संस्कार जो ड़ालें बचपन में,
वह ही स्वभाव में ढल जाते.
देते जो शिक्षा हैं बच्चों को,
उसको ही वे आगे अपनाते.
बच्चे तो एक धरोहर हैं,
सपना आने वाले कल का.
जैसा आज उन्हें तुम दोगे,
कल वैसा ही होगा उनका.
....कैलाश शर्मा
कच्ची मिट्टी के बरतन को
जवाब देंहटाएंकोमल हाथों गढ़ना होता.
आने पर सही समय पर ही
भट्टी में है तपना होता.,
बहुत उम्दा लाजबाब अभिव्यक्ति ,,,
Recent post: ओ प्यारी लली,
बच्चों का बचपन मत छीनो,
जवाब देंहटाएंन खेलकूद से उनको रोको.
उनकी रुचियों का ध्यान रखो,
न व्यर्थ उन्हें हर पल टोको.
बहुत सुंदर ..... यह बाल कविता बड़ों के लिए है वो ही हर समय टोकते रहते हैं बच्चों को ये करो ये मत करो :):)
बच्चों का बचपन मत छीनो,
जवाब देंहटाएंन खेलकूद से उनको रोको.
उनकी रुचियों का ध्यान रखो,
न व्यर्थ उन्हें हर पल टोको.-- बच्चे कल के भविष्य है . उन्हें अपनी रूचि के अनुसार काम करने दें
satik baat kahi aapne
जवाब देंहटाएंबच्चे तो एक धरोहर हैं,
जवाब देंहटाएंसपना आने वाले कल का.
जैसा आज उन्हें तुम दोगे,
कल वैसा ही होगा उनका.,,,,,बहुत सुन्दर रचना
सुन्दर रचना | छुट्टियों में तो बालकों की ऐश हो रही है |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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सुंदर संदेश!
जवाब देंहटाएंजैसा आज उन्हें तुम दोगे,
जवाब देंहटाएंकल वैसा ही होगा उनका.
वाह बहुत ही बढ़िया भाव संयोजन से सजी सुंदर एवं प्रेरणात्म्क रचना
सही बात है , बच्चे तो कच्ची मिटटी की तरह ही होते हैं
जवाब देंहटाएंसहज, सरल अभिव्यक्ति में बड़ी गूढ़ बात कह दी आपने कैलाश जी !
जवाब देंहटाएंबच्चे तो एक धरोहर हैं,
सपना आने वाले कल का.
जैसा आज उन्हें तुम दोगे,
कल वैसा ही होगा उनका.
वाकई बच्चों का आज जितना आनंदमय होगा उनका भविष्य उतना ही सुखद होगा ! बहुत सुंदर रचना !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (31-05-2013) के "जिन्दादिली का प्रमाण दो" (चर्चा मंचःअंक-1261) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
sahi kaha aapane inhe kisi bhi sndar aakar men dhala ja sakata hai
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha hai aapne
जवाब देंहटाएंबच्चे तो एक धरोहर हैं,
जवाब देंहटाएंसपना आने वाले कल का.
जैसा आज उन्हें तुम दोगे,
कल वैसा ही होगा उनका.
बेहतरीन दास्ताने बचपन......आज के सन्दर्भ में बहुत जरूरी है यह कविता अधिकांस पाठकों तक पहुंचे ..बहत बहुत बधाई
बहुत अच्छी, सार्थक कविता।
जवाब देंहटाएंsatik,sundar aur sarthak kavita
जवाब देंहटाएंsahi kaha jo ham use dete hain .......wahi wo grahan karta hai ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय कैलाश शर्मा जी , आपके बाल-गीतों में सदैव एक सार्थक संदेश होता है. सचमुच ही मनन करने का विषय है कि हम जैसा बोयेंगे, वैसी ही फसल पायेंगे. वर्तमान में बचपन अपनी स्वाभाविकता खोता जा रहा है. हम ही उन्हें प्रकृति से दूर करते जा रहे हैं.सहज बाल-क्रीड़ा की आयु में भारी-भरकम बस्तों के बोझ तले उनके बचपन को दबाते चले जा रहे हैं. प्रस्तुत कविता महज बाल-गीत ही नहीं है, यह वास्तव में बड़ों के लिये एक विचारणीय प्रश्न है.मनन करें, सही राह स्वयम् दिखाई देगी.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ....सच बच्चे तो कैसे भी ढल जाते हैं ...कुम्हार में हुनर होना चाहिए
जवाब देंहटाएंकल 14/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!