रेल चली, रेल चली ,
छुक छुक ये रेल चली.
मैं इसका चालक हूँ,
जहां चाहूँ वहां चली.
मम्मा तुम आगे बैठो,
डैडी तुम भी बैठ जाओ .
दादा दादी चढ़ो जल्दी,
बुआ तुम पीछे जाओ .
जल्दी जल्दी बैठ जाओ ,
फिर न कहना रेल चली .
मामा बैठो, मामी बैठो,
नाना बैठो, नानी बैठो.
मानू टिकट चैक करो,
बिना टिकट नहीं बैठो.
जायेगी यह हर गली,
रेल चली, रेल चली.
बाहर नहीं हाथ करो,
वर्ना चोट लग जायेगी.
डाक्टर बुलाना होगा,
ट्रेन लेट हो जायेगी .
चलने की सीटी बजी,
रेल चली, रेल चली.
स्टेशन है निकल गया,
टिफिन खोल खाना खाओ.
मेरी धन्नो नहीं आयी,
मुझ को भी खाना खिलवाओ.
वर्ना ट्रेन रह जायेगी,
यहीं पर ही खड़ी खड़ी .
रेल चली, रेल चली,
छुक छुक ये रेल चली.
छुक छुक ये रेल चली.
मैं इसका चालक हूँ,
जहां चाहूँ वहां चली.
मम्मा तुम आगे बैठो,
डैडी तुम भी बैठ जाओ .
दादा दादी चढ़ो जल्दी,
बुआ तुम पीछे जाओ .
जल्दी जल्दी बैठ जाओ ,
फिर न कहना रेल चली .
मामा बैठो, मामी बैठो,
नाना बैठो, नानी बैठो.
मानू टिकट चैक करो,
बिना टिकट नहीं बैठो.
जायेगी यह हर गली,
रेल चली, रेल चली.
बाहर नहीं हाथ करो,
वर्ना चोट लग जायेगी.
डाक्टर बुलाना होगा,
ट्रेन लेट हो जायेगी .
चलने की सीटी बजी,
रेल चली, रेल चली.
स्टेशन है निकल गया,
टिफिन खोल खाना खाओ.
मेरी धन्नो नहीं आयी,
मुझ को भी खाना खिलवाओ.
वर्ना ट्रेन रह जायेगी,
यहीं पर ही खड़ी खड़ी .
रेल चली, रेल चली,
छुक छुक ये रेल चली.
वाह...
जवाब देंहटाएंमुझे तो ये कविता सुनाई भी दे रही थी, उसी प्यारे से बच्चे से मुंह से जिसका चित्र ऊपर{ब्लॉग के नाम के साथ} है...
बहुत सुन्दर रचना है... सच बचपन में जाना आच्छा लगा...
वैसे ये रेल कहाँ से कहाँ तक है???
शायद बीच में मेरा पड़ाव भी पड़े...
बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंआप को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
chehre pe ek muskan dhire se aa gayee..:)
जवाब देंहटाएंअपना गम लेके कही और ना जाया जाये
जवाब देंहटाएंघर में बिखरी हुई चीजो को सजाया जाये
घर से मंदिर हो अगर दूर तो ऐसा करलो
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये....
बहुत सुन्दर ....प्यारी सी रचना......
जवाब देंहटाएंbahut badhiyan.. vakai akarshak...!!!
जवाब देंहटाएंmai bhi baithoonga..maanu bhaiya ticket do. :)
जवाब देंहटाएं