आसमान के सपने देखो,
पर ज़मीन पर पैर रहे.
बढते रहो सदा तुम आगे,
पर जो पीछे, साथ रहे.
नम्र बने, झुकना भी जाने,
वही सफलतायें पाता है.
ऊंचे वृक्ष गिरें आंधी में,
जो झुकता वह बच जाता है.
मोल नहीं माँ की ममता का,
यह ऋण चुका न पाओगे.
जितना प्यार दिया है उसने,
उतना तुम क्या दे पाओगे.
यह जीवन है नहीं खिलौना,
जब चाहा खेला, तोड़ दिया.
नहीं ला सको सूरज सब को,
लाओ हर कुटिया में एक दिया.
पर ज़मीन पर पैर रहे.
बढते रहो सदा तुम आगे,
पर जो पीछे, साथ रहे.
नम्र बने, झुकना भी जाने,
वही सफलतायें पाता है.
ऊंचे वृक्ष गिरें आंधी में,
जो झुकता वह बच जाता है.
मोल नहीं माँ की ममता का,
यह ऋण चुका न पाओगे.
जितना प्यार दिया है उसने,
उतना तुम क्या दे पाओगे.
यह जीवन है नहीं खिलौना,
जब चाहा खेला, तोड़ दिया.
नहीं ला सको सूरज सब को,
लाओ हर कुटिया में एक दिया.
मोल नहीं माँ की ममता का,
जवाब देंहटाएंयह ऋण चुका न पाओगे.
जितना प्यार दिया है उसने,
उतना तुम क्या दे पाओगे...
बहुत ही प्रेरणादायी रचना !
.
बच्चों को अच्छी सीख देती प्रेरणादायक कविता| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंbacco ke liye sunder sandesh diya hai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं कैलाशजी ....... प्यारे ब्लॉग के लिए बधाई......
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत प्रेरणा दायक प्रस्तुती !
जवाब देंहटाएंयह जीवन है नहीं खिलौना,
जवाब देंहटाएंजब चाहा खेला, तोड़ दिया.
नहीं ला सको सूरज सब को,
लाओ हर कुटिया में एक दिया.
Bahut sahi kaha bhai!
saari rachnayein bahut sunder hai ek saath padker ek saath comment kar rahi hoon
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