दुनियां कितनी अच्छी होती.
न स्कूल यहाँ पर होते,
न टीचर का फिर डर होता.
मिल जाती छुट्टी बस्ते से,
होम वर्क न करना होता.
न टीवी पर रोक है लगती,
गेम खेलते जब मन करता,
सारे घर में धूम मचाते,
कोई रोक टोक न करता.
लेकिन आती एक समस्या,
खाना घर में कौन बनाता.
पैसे कौन दूध को देता,
कौन खिलोने हमें दिलाता.
अच्छा यही रहें मम्मा संग,
सब कुछ डैडी हमें दिलायें.
पढ़ने की मेहनत अच्छी है,
अच्छा है स्कूल ही जायें.
कविता की शुरूआत बहुत अच्छी है!
जवाब देंहटाएंलेकिन आती एक समस्या,
जवाब देंहटाएंखाना घर में कौन बनाता.
पैसे कौन दूध को देता,
कौन खिलोने हमें दिलाता.
bahut badiya baalkavita.. chintan..manansheel..
badhai..
पर ये हो नहीं सकता न सर जी. आपने सुन्दर लिखा, बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंsee my new post
जवाब देंहटाएंलादेन की मौत और सियासत पर तीखा-तड़का
बहुत सुन्दर मननशील बालकविता| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंbaccho ko prerna deti sunder kavita
जवाब देंहटाएंसुंदर मनमोहक कविता....
जवाब देंहटाएंbacche bhi samajhdaar ho gaye hain aajkal. :):):)
जवाब देंहटाएंहोते बच्चे ही दुनियां में,
जवाब देंहटाएंदुनियां कितनी अच्छी होती
वाकई भाई जी ! निर्भय स्नेह में डूबे मस्त खिलखिलाते ये बच्चे सबसे हाथ पसरे गले मिलने को हर समय तैयार हैं ! और अगर इनका बिगड़ा हुआ स्वरूप हम बड़ों को देख लें तो लगता है क्या से क्या हो गया !
शुभकामनायें आपको !
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता है । धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत, प्यारी और मनमोहक रचना लिखा है आपने ! बधाई!
जवाब देंहटाएंबच्चों पर लिखने के लिए मन को बच्चा बनाना पड़ता है।
जवाब देंहटाएं..बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं आप। सुंदर कविता।